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👁🗨 Vision Wednesday at Netram Eye Foundation!
🆓 Free Eye Check-Up + 🎉 15% OFF on Cataract Surgery!
Dear residents,
If you’re experiencing blurred vision, eye strain, or are diabetic — don’t ignore your eyes. Join us for a Free Eye Screening Camp by our expert doctors.
📅 Date: Wednesday, 30th July 2025
🕘 Time: 9:00 AM to 2:00 PM
📍 Location: Netram Eye Centre, E-98, GK-2, New Delhi – 48
📞 Contact: 011-41046655, 9319909455
🌐 www.netrameyefoundation.com
🔹 Services Include:
✅ Free Eye Screening
✅ Cataract Surgery at 15% Discount
🙌 Open to RWA members, senior citizens & local residents.
📝 Book your appointment in advance and skip the queue!
Netram Eye Foundation – Your Eyes, Our Responsibility
'જ્ઞાની પુરુષ'નો એક અક્ષર જ જો સમજમાં આવ્યો તો કલ્યાણ જ થઈ જાય! - દાદા ભગવાન
વધુ માહિતી માટે અહીં ક્લિક કરો: https://dbf.adalaj.org/QTeDFA8V
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आज ये रास्ता वही है —
पर आवाज़ें गुम हैं,
कदम अब तेज़ हैं, और दिल कहीं पीछे छूट गया है।
पेड़ अब भी झुकते हैं जैसे पूछ रहे हों —
"कहाँ रह गए वो दिन जब तुम बेफिक्री से चलते थे?"
लेकिन हर बार जब यहाँ से गुज़रते हैं,
तो दिल कहता है —
"कुछ भी बदला नहीं…
बस हम थोड़े दूर हो गए हैं।
अब हर चीज़ अपनी होकर भी अजनबी लगती है।
वक़्त भी चल रहा है…
पर बचपन कहीं यहीं रुक गया था —
इन पेड़ों की छांव में,
इन सड़कों की ख़ामोशी में।
- शिवांगी विश्वकर्मा
🙏🙏કુદરતને જેવું આપીએ 'તેવું જ તે આપશે'.
હંમેશા કુદરતનો વ્યવહાર "જેવા સાથે તેવા" નો રહ્યો છે.
આપણે 'વરસાદ' આપણી મરજી મુજબ નો જોઈએ છે. ઋતુઓ ખુશનુમા વાતાવરણ આપે તેવું 'ઈચ્છીએ' છે.
જ્યારે આડેધડ 'વૃક્ષો કાપવા', પ્રદુષણ ફેલાવી પ્રકૃતિ સાથે 'ક્રુરતા પૂર્વકનો' વ્યવહાર કરીએ છે.🦚🦚
🌳⛅🌴વિશ્વ પ્રકૃતિ સંરક્ષણ દિવસ 🌴⛅🌳
" હાલ એ દિલ "
હાલ એ દિલ અમે ક્યારેય તમને કહેતાં નથી.
મતલબ એનો એ નથી કે તમને ચાહતાં નથી.
કરું છું પ્રતીક્ષા એ જ જગ્યાએ ઊભા રહીને,
શું કરું? તારા કોઈ રસ્તા અહીં પહોંચતાં નથી.
નજરથી નજર મળતાં મલકી ઊઠે હોઠ, છતાં
હૃદયમાં પાંગરી રહેલા પ્રેમનેય સમજતાં નથી.
તારા સંગાથે જ તો સજતી 'તી સાંજ સીંદૂરી,
તારા વગર હવે તો ચાંદ કે સૂરજ ગમતાં નથી.
ક્યાં છે એ નમણી સાંજ? ક્યાં છે સુહાની રાત?
પૂનમે પણ "વ્યોમ" પર તારલા ટમટમતાં નથી.
✍... વિનોદ. મો. સોલંકી "વ્યોમ"
જેટકો (જીઈબી), મુ. રાપર.
🌿 विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस | World Nature Conservation Day
🗓️ 28 जुलाई
✍️ लेखक: धीरेंद्र सिंह बिष्ट
“अगर धरती थक जाएगी, तो इंसान कहाँ साँस लेगा?”
आज का दिन सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है —
कि हम उस माँ को अनदेखा कर रहे हैं, जिसने हमें जीना सिखाया।
पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं होते,
वो हमारी साँसें हैं, हमारी छांव, और हमारी उम्मीद का नाम हैं।
हर बार जब हम एक पेड़ काटते हैं,
हम अपने ही भविष्य की जड़ें उखाड़ते हैं।
नदियाँ सूख रही हैं, मौसम बदल रहा है,
और हम अब भी सोच रहे हैं — “मेरे एक से क्या होगा?”
तो सुनिए —
“आपके एक कदम से एक जंगल फिर उग सकता है।
आपके एक बोए बीज से आने वाली पीढ़ियाँ साँस ले सकती हैं।”
आज World Nature Conservation Day पर सिर्फ पोस्ट मत कीजिए —
एक पौधा लगाइए।
किसी नदी को साफ़ कीजिए।
या कम से कम —
प्रकृति को ‘थैंक यू’ कहिए और उसका सम्मान कीजिए।
यह धरती सिर्फ रहने की जगह नहीं —
यह एक ज़िम्मेदारी है।
संरक्षण सिर्फ एक शब्द नहीं — ये हमारे अस्तित्व की अंतिम उम्मीद है।
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कोचिंग नगरी-सीकर
सीकर शहर, नहीं कोई मामूली बात,
यहाँ हर गली में चलता है पाठशालाओं का व्यापार।
बैनर-बोर्ड चमकते जैसे नेता के वादे,
IAS हो या हो REET,
यहाँ हर कोचिंग सजाती है उम्मीदों की भीड़।
मोटिवेशन क्लास में उड़ते जज़्बात,
"तू कर सकता है", ये चलता दिन-रात।
पर बैच में भीड़ ऐसी कि चेहरा दिखे ना साफ,
डाउट पूछना हो तो, करनी पड़े क्लास के बाद तलाश।
पीजी छोटा, फीस बड़ी, चाय की दुकान बनी यारी,
गणित कम, चिंता ज़्यादा,
हर कोचिंग कहे – "टॉपर हमारा",
पर फेल हुए बच्चों का कोई ना सहारा।
टेस्ट में नंबर आए जीरो,
फिर भी होर्डिंग पर हीरो।
शहर बना एजुकेशन की मंडी,
जहाँ सपनों की लगती है बोली।
“हर मुस्कुराता चेहरा स्वस्थ मन का प्रतीक नहीं होता…”
हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ व्यक्ति की बातों से ज़्यादा उसके लहज़े और हाव-भाव पर ध्यान दिया जाता है।
लेकिन सच ये है कि इंसान के विचार ही उसकी मानसिक स्थिति तय करते हैं — न कि उसकी मुस्कान या परिधान।
कई बार जो व्यक्ति बाहर से बेहद शालीन, परिपक्व और आकर्षक लगता है,
वह अंदर से स्वार्थ, द्वेष या गहराई तक बिखराव से भरा हो सकता है।
हर विनम्रता के पीछे अच्छाई नहीं होती और हर तीखी बात के पीछे क्रूरता नहीं।
जो असली होता है, वो दिखावे में यकीन नहीं करता।
वो अपने विचारों की स्पष्टता से पहचाना जाता है, न कि मीठे शब्दों से।
इसलिए जब भी किसी को समझना चाहो, उसके शब्दों से आगे बढ़कर उसके विचारों में झाँको।
क्योंकि वही उसकी सोच की ऊँचाई और मन की गहराई का आईना होते हैं।
दिखावे से मत बहको — विचारों की गहराई को समझो।
यही सोच किसी लेखक को लेखक बनाती है, और इंसान को इंसान।
– धीरेन्द्र सिंह बिष्ट
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