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"મારી વાર્તા હું ખુદ છું મારી વાતો હું ખુદ છું...
હું બીજાને શું કહું કેમકે મારો જવાબ હું ખુદ છુ"...

rsankhat059gmail.com234485

असुर सम्राट “परम भागवत भक्त प्रह्लाद” का संपूर्ण इतिहास जाने👇🏻
https://www.matrubharti.com/novels/38431/param-bhagwat-prahlad-ji-by-praveen-kumrawat

विवरण : भारतवर्ष के ही नहीं, सारे संसार के इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वंश यदि कोई माना जा सकता है, तो वह हमारे परम् भगवत भक्त दैत्यर्षि प्रहलाद का ही वंश है। सृष्टि के आदि से आज तक न जाने कितने वंशों का विस्तार पुराणों और इतिहासों में वर्णित है किन्तु जिस वंश में हमारे महाभागवत् का आविर्भाव हुआ है, उसकी कुछ और ही बात है। इस वंश के समान महत्त्व रखने वाला अब तक कोई दूसरा वंश नहीं हुआ और विश्वास है कि भविष्य में भी ऐसा कोई वंश कदाचित् न हो।

प्रह्लाद जी ने अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का सामना किया और भगवान विष्णु में अपनी अटूट भक्ति के कारण वे प्रसिद्ध हुए। उनके पुत्र विरोचन और पौत्र राजा बलि भी महान राजा और भक्त हुए, जिन्होंने अपने-अपने समय में धर्म और न्याय की स्थापना की। इसलिए, प्रह्लाद जी और उनके वंशजों की महानता उनके भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति, धर्म और न्याय के प्रति समर्पण और अपने-अपने समय में प्रजा के कल्याण के लिए किए गए कार्यों के कारण है।

bapparawal418006

★.. चैप्टर—03—मुहम्मद एक मानसिक रोग (c)

दिधुुवी विकार:

मुहम्मद उन्मत्त अवसादग्रस्तता की समस्या से भी पीड़ित रहा होगा। इस समस्या को सामान्यतः द्विश्रुवी विकार (बाईपोलर डिस्ऑर्डर-बीडी) के रूप में जाना जाता है । इस विकार से पीड़ित इंसान का मिजाज नाटकीय रूप से अचानक बदलता है और वह कभी अचानक अत्यंत खुशी महसूस करने लगता है तो कुछ ही देर में अचानक नितांत दुख, निराशा के भंवर में डूब जाता है। मन की इस उच्च व निम्न अवस्था को क्रमश: उन्‍्माद और अवसाद कहते हैं। मन के भीतर उथल-पुथल मचाने वाले मिजाज में अचानक उतार-चढ़ाव इस बीमारी की विशेषता है । इस मानसिक बीमारी अर्थात बीडी के लक्षण हैं: उन्‍्मादी अवस्था के दौरान चिड़चिड़ापन, अतिरंजित आत्मसम्मान का भाव, नींद उचटना, असामान्य रूप से ऊर्जावान महसूस करना, मन में तेजी से अजीबोगरीब विचार आना, बहुत ताकतवर होने का भ्रम पैदा होना, ठीक से निर्णय न ले पाना, कामेच्छा बढ़ जाना और दूसरों की हर बात को काटते हुए गलत साबित करने की कोशिश करना आदि। अवसाद की अवस्था में निराशा में डूबना अथवा स्वयं को किसी लायक न महसूस करना, खिन्‍नता व ग्लानि महसूस करना, थकावट महसूस करना, मौत या आत्महत्या का विचार या आत्महत्या का प्रयास करना आदि इस बीमारी के लक्षण हैं | इब्ने-साद एक ऐसी हदीस बताता है, जिसे पढ़कर मुहम्मद में द्विध्रुवीय विकार के लक्षण देखे जा सकते हैं । इब्ने-साद इस हदीस में लिखता है: “कभी-कभी रसूल इतना लंबा रोजा रखते थे, मानो वे कभी रोजा खोलना ही न चाहते हों और कभी-कभी वह लंबे समय तक रोजा नहीं रखते हैं, तब ऐसा लगता था कि मानो वे अब रोजा कभी नहीं रखना चाहते हैं|?”

इन निष्कर्षों के आधार पर यह स्पष्ट है कि मुहम्मद कई प्रकार की मानसिक व व्यक्तित्व संबंधी बीमारियों से ग्रस्त रहा होगा। ऑकैम रेजर के अनुसार, किसी भी चीज की व्याख्या के लिए उससे अधिक धारणा नहीं बनानी चाहिए, जितनी की आवश्यकता है । यदि टीएलई और एनपीडी नामक बीमारी मुहम्मद के रहस्यों (इपीफैनी) और व्यवहार की व्याख्या कर सकते हैं तो गूढ़, धोखा देने वाले और निराधार रहस्यमयी स्पष्टीकरण के पीछे क्‍यों भागना ? अब हमारे पर वैज्ञानिक साक्ष्य है कि मुहम्मद मानसिक रूप से बीमार था और उसके साथियों को इस बात का भान पहले से ही था। काश ! ये लोग मुहम्मद की क्रूर फौज द्वारा कुचल दिए गए होते और इन्हें चुप करा दिया गया होता।

कैसी विडम्बना है कि एक अरब से अधिक लोग एक पागल व्यक्ति को अपना पैगम्बर मानते हुए उसके पीछे खड़े हैं और अपने जीवन में हर तरह से उसे उतारना चाहते हैं। इसमें कोई आशएचर्य नहीं है कि मुस्लिम दुनिया मुरझा रही है। मुस्लिमों की कारस्तानी केवल पागलपन के रूप में ही परिभाषित की जा सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे एक मानसिक रूप से विक्षिप्त को अपना आदर्श और मार्गदर्शक मानते हैं। जब समझदार लोग पागल इंसान का अनुसरण करते हैं तो वे भी पागलों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। यह शायद दुनिया की सबसे बड़ी दुखद घटना है। इतने क़ूर परिमाण में स्वयं पर थोपा गया पागलपन वास्तविक घृणा व द्वेष पैदा करने वाला होता है।

हिरा की ख़ोह का रहस्य

इस पुस्तक की प्रूफ रीडिंग करते समय एक दोस्त ने ओरेकल ऑफ डेल्फी के बारे में मजेदार बात गौर की। यह बात इस ओर प्रकाश डाल सकती है कि मुहम्मद ने अपने पैगम्बरी संदेश को खोह में क्‍यों हासिल किया।

ओरेकल आफ डेल्फी ग्रीक के एक प्राचीन मंदिर का स्थान था। पूरे यूरोप से लोग वहां पीथिया एट माउंट पैरनैसस से मिलने आते थे और अपने भविष्य के बारे में प्रश्न पूछकर उत्तर प्राप्त करते थे। पीथिया वह आत्मा थी, जो महिलाओं के ऊपर आती थी और ईश्वर अपोलो इसी के माध्यम से बात करते थे।

अपोलो के मंदिर में एक पुजारी प्लूटार्क कहते थे कि प्रीथिया के पास जमीन के भीतर स्थित एक कुंड से भाप के रूप में पैगम्बरी की ताकत आती थी। मंदिर के निकट स्थित भूभाग के बारे में अभी हाल में हुए अध्ययन हुआ है। यह अध्ययन पुरातत्वविदों को इस धारणा को मानने प्रेरित करता है कि प्रीथिया के होठ मादक धुएं के कारण खुल जाते थे 7”

नेशनल जियोग्राफी के अगस्त 200व के अंक में इस अध्ययन के बारे में बताया गया । इस अध्ययन के मुताबिक डेल्फिक मंदिर के ठीक नीचे भूमि के भीतर दो भाग अलग-अलग बंटे हुए थे, जिससे वहां दरार आ गई थी। अध्ययन में इसके भी साक्ष्य मिले कि पास स्थित एक झरने से मदहोश करने वाली गैसें निकलती थीं और मंदिर की चट्टान पर जमा होती थीं।इस अध्ययन के सह लेखक और कनेक्टिकट, मिडिल टाउन स्थित वेसलेयन विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्री जेल डी. बूअर कहते हैं, 'प्लूटार्क की धारणा ठीक थी। वास्तव में वहां गैसें थीं, जो उस दरार से निकलती थीं।!'

इनमें से एक गैस एथिलीन थी, जो डेल्फी मंदिर के स्थान के निकट झरने के पानी में पाई गई थी । एथिलीन एक मीठी-मीठी सुगंध वाली गैस होती है जो ऐसा मादक प्रभाव उत्पन्न करती है, जिससे मनुष्य में मदहोशी भरी सुस्ती पैदा होती है । वाशिंगटन डीसी के जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शास्त्रीय प्रोफेसर डाएन हैरिस-क्लाइन मानती हैं कि प्रीथिया के ध्यानमग्र होने और रहस्यमयी व्यवहार की पड़ताल के लिए एथिलीन महत्वपूर्ण घटक है। उन्होंने कहा, “सामाजिक अपेक्षाओं के साथ किसी बंद स्थान पर किसी महिला को ऐसा प्रेरित किया जा सकता है कि वह देववाणी जैसा कुछ बोलने लगे।?“

पारंपरिक रूप से से यह बताया जाता है कि पीथिया जब मंदिर के तलघर में स्थित चारों ओर से बंद छोटे से कक्ष में दिव्य संदेश प्राप्त करती थी । डी बुअर कहते हैं कि जैसा कि किवदंतियों में बताया गया है कि पीथिया महीने में एक बार उस कक्ष में जाती थी। ऐसे में उसे पता चल गया होगा कि उस पर मादक गैस की सांद्रता का प्रभाव है, जो उसे मादक नशे की हालत में पहुंचा देता था और लगता था कि जैसे ध्यान की अवस्था में हो । मानसिक रूप से बीमार लोग खुद को मस्त रखने (एक तरह से अपने में खोए रहने ) के लिए बारंबार शराब और मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं।

यद्यपि कि मुहम्मद में बचपन से ही मिर्गी संबंधी अर्द्धंचेतन अवस्था में चले जाने की समस्या थी। फिर भी हमें इस तथ्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि हिरा की खोह में मदहोश करने वाला मादक धुंध का प्रभाव था, जिससे उसके दिमाग में अजीब-अजीब कल्पनाएं पैदा होती थीं। मेरी दोस्त ने टिप्पणी की, 'यदि एथिलीन की हल्की खुराक उल्लासोन्माद अर्थात मदहोशी पैदा कर सकती है तो यह समझ पाना कठिन नहीं है कि क्यों मुहम्मद उस खोह में दिन बिता देना चाहता था।' मेरी दोस्त ने कहा, 'केवल इसलिए कई दिनों का खाना साथ लेकर जाना कि खोह में पड़े रहना था, निश्चित रूप से अजीबोगरीब व्यवहार था और खासकर उस व्यक्ति के लिए तो यह और भी अजीब मालूम होता है जो शादीशुदा था, जिसके छोटे-छोटे बच्चे थे ! पर यह रहस्य कोई गूढ़ नहीं है कि खोह में कुछ ऐसा था जो उसे एक तरह के नशे अथवा मदहोशी की हालत में ले जाता था।' हिरा की खोह बमुश्किल साढ़े तीन मीटर लंबी और डेढ़ मीटर चौड़ी थी, यानी एक स्ानगृह के बराबर इसका आकार था। यदि अल्लाह सर्वव्यापी है तो मुहम्मद को इस विशेष खोह में इतनी रुचि क्‍यों थी ? खोहों अथवा बंद निर्जन स्थानों पर मादक गैसों के अलावा फंफूद एवं सूक्ष्मजीवी वाहक भी होते हैं, जो दिमाग को प्रभावित करते हैं । पिरामिडों में उगने वाले एक घातक फंफूद के कारण वह फिरऔन के अभिशाप के रूप में बदल गया था। खोहों में भाप की सांद्रता घटती-बढ़ती रहती है । यह भूकंप पर निर्भर करता है जो भूमि के भीतर स्थित मादक तरल पदार्थों को प्रवाहित करता रहता है । इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब मुहम्मद हिरा की उस खोह में अकेले समय व्यतीत करता था तो वह प्रदूषित थी।

[बुक नाम — अंडरस्टैंडिंग मोहम्मद
सर्च गूगल एंड डाउनलोड pdf

suhanamansuri236030

वो जो रोज़ आईने में खुद को देखती है,
वो खुद को नहीं देखती…
वो एक ऐसा सपना देखती है
जो कभी पूरा नहीं हुआ।
हर सुबह अपने चेहरे पर मुस्कान सजाती है,
ताकि दुनिया उसकी आँखों में छुपे सवाल न पढ़ सके।
मगर आईना जानता है —
वो अब भी उसी अधूरे ख्वाब में जी रही है,
जो कभी था तो उसका अपना,
मगर अब सिर्फ एक धुंधला अक्स बनकर
उसके सामने खड़ा रहता है…
हर रोज़, हर सुबह, हर साज़

shaheena

काश! हमारे भी पंख होते,
हम भी होंसलों की उड़ान भरतें,
कम उम्र में शादी कर के,
यूं ना जिंदगी नीलाम करते।
#काश !
#कविता

harishkumar6240

इक रोज कदर मेरी भी करोगे जनाब
पर अफसोस करोगे मेरी मौत के बाद ....

bita

सिर्फ शब्दों से ही न करना..
किसी के वजूद की पहचान
हर कोई उतना कह नहीं पाता
जितना समझता
और महसूस करता है....

dipika9474

❤️ तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी

📖 भाग 3: दिल के पीछे छुपा राज़


---

> अनन्या और अर्जुन — अब एक ही प्रोजेक्ट के लिए हर शाम मिलते।

अनन्या अपनी कार में बैठी रहती, अर्जुन पास के कैफे से 30 रुपए की चाय मंगवाता।

दोनों के बीच बात बस इतनी होती —

“Topic ready किया?”

“हाँ, तुमने देखा?”

“नहीं, तुम भेज दो।”

लेकिन उस दिन अर्जुन थोड़ी देर से आया।

अनन्या ने पहली बार कमी महसूस की… खुद से नज़रें चुराई।

जैसे ही अर्जुन आया, उसके हाथ में एक छोटी डायरी थी।

“तुम लेट क्यों हुए?”

“कुछ खास नहीं... एक छोटा काम था।”

“क्या काम?”

अर्जुन मुस्कराया, फिर बोला –
“मैं बच्चों को ट्यूशन देता हूँ। आज एक बच्ची रो रही थी... उसका पिता हॉस्पिटल में है। उसे टाइम पर पढ़ाना ज़रूरी था।”

अनन्या कुछ नहीं बोली… पहली बार अर्जुन को गौर से देखा।

जिस लड़के को वो ‘classless’ कहती थी, उसमें कुछ classy था… दिलवाला classy।

अगले दिन, अनन्या चुपचाप अर्जुन के लिए एक कॉफी लेकर आई।

“ये क्या है?” अर्जुन ने पूछा।

“Thanks for yesterday... I mean... for being a good guy.”

अर्जुन हँसा, “Oh wow! आज सूरज कहाँ से निकला?”

अनन्या मुस्कराई... हल्की सी… दिल के किसी कोने में कुछ हिला था।
शादी... या सिर्फ एक सौदा?
My Contract Wife – भाग 1
✍️ RAJU KUMAR CHAUDHARY

rajukumarchaudhary502010

❤️ तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी

📖 भाग 3: दिल के पीछे छुपा राज़


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> अनन्या और अर्जुन — अब एक ही प्रोजेक्ट के लिए हर शाम मिलते।

अनन्या अपनी कार में बैठी रहती, अर्जुन पास के कैफे से 30 रुपए की चाय मंगवाता।

दोनों के बीच बात बस इतनी होती —

“Topic ready किया?”

“हाँ, तुमने देखा?”

“नहीं, तुम भेज दो।”

लेकिन उस दिन अर्जुन थोड़ी देर से आया।

अनन्या ने पहली बार कमी महसूस की… खुद से नज़रें चुराई।

जैसे ही अर्जुन आया, उसके हाथ में एक छोटी डायरी थी।

“तुम लेट क्यों हुए?”

“कुछ खास नहीं... एक छोटा काम था।”

“क्या काम?”

अर्जुन मुस्कराया, फिर बोला –
“मैं बच्चों को ट्यूशन देता हूँ। आज एक बच्ची रो रही थी... उसका पिता हॉस्पिटल में है। उसे टाइम पर पढ़ाना ज़रूरी था।”

अनन्या कुछ नहीं बोली… पहली बार अर्जुन को गौर से देखा।

जिस लड़के को वो ‘classless’ कहती थी, उसमें कुछ classy था… दिलवाला classy।

अगले दिन, अनन्या चुपचाप अर्जुन के लिए एक कॉफी लेकर आई।

“ये क्या है?” अर्जुन ने पूछा।

“Thanks for yesterday... I mean... for being a good guy.”

अर्जुन हँसा, “Oh wow! आज सूरज कहाँ से निकला?”

अनन्या मुस्कराई... हल्की सी… दिल के किसी कोने में कुछ हिला था।

rajukumarchaudhary502010

📝 My Contract Wife

✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में

"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."


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प्रस्तावना

अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।


---

कहानी शुरू होती है…

अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।

अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।

एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —

> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”



अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:

एक साल का कांट्रैक्ट

कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं

मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी

माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक


अनन्या मान गई।


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शादी… और उसका नाटक

शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।

लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।

अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।

वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।


---

कांट्रैक्ट के परे की दुनिया

एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —

> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”



अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।

एक रात अर्जुन ने पूछा —

> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”



अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —

> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”




---

टूटता समझौता, जुड़ते दिल

एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।

अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।

> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”



पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।

> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”



अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।

> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”



> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”



अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।


---

एपिलॉग

अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।

"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"


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🌟 सीख:

रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।

rajukumarchaudhary502010

📝 My Contract Wife

✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में

"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."


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प्रस्तावना

अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।


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कहानी शुरू होती है…

अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।

अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।

एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —

> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”



अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:

एक साल का कांट्रैक्ट

कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं

मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी

माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक


अनन्या मान गई।


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शादी… और उसका नाटक

शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।

लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।

अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।

वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।


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कांट्रैक्ट के परे की दुनिया

एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —

> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”



अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।

एक रात अर्जुन ने पूछा —

> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”



अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —

> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”




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टूटता समझौता, जुड़ते दिल

एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।

अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।

> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”



पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।

> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”



अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।

> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”



> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”



अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।


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एपिलॉग

अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।

"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"


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🌟 सीख:

रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।
💍 My Contract Wife

✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा

प्रस्तावना:

प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?


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कहानी की शुरुआत

अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।

पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”

माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —

> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"




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दूसरी ओर

अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।

उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।

जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —

> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"



अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।


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शादी: एक नाटक की शुरुआत

शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।

अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।

अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।


धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।


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भावनाओं का बदलता मौसम

6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?

एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —

> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”



अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।


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टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल

जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।

एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —

> “क्या हुआ?”



अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —

> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”




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कहानी का मोड़

अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?

फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।

अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।

> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”



अनन्या की आँखें भर आईं।

> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”



> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”




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एपिलॉग: एक नई शुरुआत

अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।

अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।


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🌟 सीख:

रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।

rajukumarchaudhary502010

📝 My Contract Wife

✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में

"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."


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प्रस्तावना

अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।


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कहानी शुरू होती है…

अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।

अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।

एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —

> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”



अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:

एक साल का कांट्रैक्ट

कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं

मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी

माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक


अनन्या मान गई।


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शादी… और उसका नाटक

शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।

लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।

अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।

वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।


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कांट्रैक्ट के परे की दुनिया

एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —

> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”



अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।

एक रात अर्जुन ने पूछा —

> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”



अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —

> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”




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टूटता समझौता, जुड़ते दिल

एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।

अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।

> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”



पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।

> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”



अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।

> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”



> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”



अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।


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एपिलॉग

अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।

"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"


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🌟 सीख:

रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।
💍 My Contract Wife

✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा

प्रस्तावना:

प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?


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कहानी की शुरुआत

अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।

पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”

माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —

> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"




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दूसरी ओर

अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।

उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।

जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —

> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"



अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।


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शादी: एक नाटक की शुरुआत

शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।

अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।

अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।


धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।


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भावनाओं का बदलता मौसम

6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?

एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —

> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”



अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।


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टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल

जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।

एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —

> “क्या हुआ?”



अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —

> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”




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कहानी का मोड़

अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?

फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।

अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।

> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”



अनन्या की आँखें भर आईं।

> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”



> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”




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एपिलॉग: एक नई शुरुआत

अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।

अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।


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🌟 सीख:

रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।

rajukumarchaudhary502010

આમ એકલું રહેવું પસંદ છે મને...
કારણ કે તારા ગયા પછી એકલી જ છું...
જીવી તો જાણ એકલું...તું એટલું તો સમજીશ કે જે તારું હતું એ બધું પણ આ એકલતા છીનવી ગય...
એકલતા ભરેલું જીવન છે મારું પણ એમાં શાંતિ છે...હા...એક ક્યાં ખૂણા માં છુપાયેલું દર્દ છે પણ...હા...એ એની જગ્યાએ સીમિત છે.
ભૂલી તો એજ પળ માં ગય હતી જ્યારે વાત...
દૂર જવાની હતી...અને હવે યાદ નહીં કરું...
કેમકે અમે એકલા જીવતા શીખી લીધું...

rsankhat059gmail.com234485

"वो जो कहते थे, कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे,
आज सबसे पहले वही छोड़ गए हमें...
ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली हमने,
क्योंकि हर अल्फ़ाज़ अब दर्द दे जाता है।"


नीतू सुथार

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“जब पहाड़ रो पड़े” — एक किताब नहीं, एक पुकार है।
यह किताब उन वीरान दरवाज़ों, सूनी गलियों और अकेली माताओं की कहानी है, जिनके बेटे अब लौटते नहीं। यह उन बेजान खेतों की आहट है, जिनकी मिट्टी अब सिर्फ़ यादें समेटे है।

उत्तराखंड के उन 734 गाँवों की पीड़ा को शब्द देना आसान नहीं था, जहाँ कभी चूल्हा जलता था, स्कूलों में घंटियाँ बजती थीं, चौपालों में किस्से गूंजते थे — आज वहाँ बस सन्नाटा है।

📚 “जब पहाड़ रो पड़े” पलायन की त्रासदी नहीं, एक सामाजिक और भावनात्मक दस्तावेज़ है।
यह पुस्तक बताती है कि कैसे रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं के अभाव ने हजारों लोगों को अपनी जड़ों से काट दिया।
बेटा इंजीनियर बन गया, लेकिन अब माँ की आँखें उसे हर त्योहार पर ढूँढती हैं।
बापू अब भी हल थामे खेत तक जाता है, शायद बेटा एक बार पूछ ले — “बाबू, खेत दिखाओ…”

इस किताब में आँकड़े भी हैं, आँसू भी। हकीकत भी है, उम्मीद भी।
यह उन लोगों की आवाज़ है जो कभी नहीं कह पाए कि वे क्या महसूस करते हैं।

📝 लेखक: धीरेंद्र सिंह बिष्ट
🎯 अगर आपकी जड़ें किसी पहाड़ से जुड़ी हैं, या कोई गाँव अब भी आपकी यादों में बसता है — तो यह किताब आपके लिए है।

📖 “जब पहाड़ रो पड़े” — एक कोशिश, एक संकल्प… पहाड़ को फिर से जीने की उम्मीद देने की।

dhirendra342gmailcom

ખુશી, એ તો છે જીવનનો સાર,
ભરી દે દિલમાં નવો સંચાર.
જિંદગી જીવવાનો બદલે એ તરીકો,
હર પળને બનાવે રોશન, દે એક નવી દિશા.

તો પછી શાને દુઃખોનો કરશું વિચાર?
ચાલો, ખુશીથી ભરીએ આ સંસાર.
હંમેશા ખુશ રહેવું, એ જ છે જીવનનો સાર,
આવો, હસતાં રહીએ, ન કરીએ કોઈનો ભાર.
DHAMAK

heenagopiyani.493689

एक शे'र ✍🏻

jigyasusaini2900

ഹൃദയം 🫀

മാംസത്തിന്റെ കൂടാരത്തിൽ
സ്നേഹത്തിന്റെ താളമിട്ട്,
അടങ്ങിയൊതുങ്ങാതെ
മിടിക്കുന്നൊരൊച്ച.

ഇരുണ്ട ഗുഹയിൽ
ഒരു വെളിച്ചമായ്,
ജീവന്റെ തുടിപ്പായ്,
ഹൃദയമേ നീ ഉണരുന്നു.

വിഷാദത്തിൻ്റെ കയ്പുനീരിൽ,
വേദനയുടെ തീച്ചൂളയിൽ,
കത്തിജ്വലിച്ചാലും,
നീയെന്നും സ്നേഹം ചൊരിയുന്നു.

ഒരു കടലായ്,
നിറഞ്ഞൊഴുകുന്നു നീ,
ദുഃഖത്തിൻ്റെയും,
സന്തോഷത്തിൻ്റെയും തിരമാലകളായി

നിൻ്റെ സ്പന്ദനത്തിൽ
ഞാൻ എന്നെ അറിയുന്നു.
ജീവിതത്തിൻ്റെ ഒഴുക്കിൽ
നിനക്കായ് ഞാൻ പാടുന്നു.

✍️തൂലിക _തുമ്പിപ്പെണ്ണ്

statusworld100748

> “वो स्कूल के दिन… अब सिर्फ यादों की किताब में बचे हैं।”
अगर आपको भी अपने स्कूल के दिन याद आए — ❤️ ज़रूर दबाएं

#schooldays #hindipoem #kahaniyanbydeepak #poetryvibes #MatruBhartiWriters

@khaniyabydeepak

kahaniyanbydeepak

લોક વાણી ભાગ ૧

મુર્ખ થઈ ને સહે,એની વહે વાત.
અજ્ઞાની માથે ફરે,તૃણ લઈ આવે વાત.
તારા હિણતાના હણ્યા હજાર..........

લોભ પચેડો માથે મેલ્યો,
સંસાર સઘળું ભાન ભૂલ્યો.
ઢોર પાછળ જેમ ફર ેછે ઢંઢાર.....

મોહ માયા વ્યાપી અંગે,
સ્વાર્થ માં ના કોઈ સંગે.
વિત્યા જે નર તુજ પુર્વે તે સંભાર.....

કુંડી કાયા દુર્ગુણ માથે,
વિકારો ના વન ખેડવા ન સાથે.
શીલ વિવેક હિણ દેહ દંભાર......

અવતરી રહે પલ અંતરની,
ન નીતિ દયા ઘર્મ ઘડતરની.
કેમ સૂખ મા સરે સંસાર........

કહે મનજી મનરવ વહે વાત,
શીખા મણે ચાલે સહુ ભુજી ભાત.
વીતે સમય વીજ ચમકાર......

મનજીભાઈ કાળુભાઇ મનરવ મુ બોરલા

manjibhaibavaliya.230977

I am going home today

virdeepsinh

📘 टाइटल: "तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी"

(अगर तुम चाहो तो इसे बाद में बदल भी सकते हो!)


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💞 कहानी का छोटा सारांश (Summary for Profile):

> “तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी” एक साधारण लड़के और एक अमीर लड़की की ऐसी मोहब्बत की कहानी है, जो झूठ से शुरू होकर सच्चाई से टकराती है।
रिश्तों की उलझनों, अतीत के रहस्यों और दिल को छू लेने वाले इमोशन्स से भरी इस कहानी में प्यार सिर्फ एक एहसास नहीं, एक जंग है — खुद से, दुनिया से, और क़िस्मत से।




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🔥 भाग 1: पहली टक्कर

📍स्थान: दिल्ली का एक कॉलेज

📖 कहानी:


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[पार्ट 1 – पहली टक्कर]

> “ओए! देख के चलो ना!”

अनन्या की चिल्लाने वाली आवाज़ इतनी तेज़ थी कि आधा कैंपस घूम गया।

अर्जुन – जो अपनी पुरानी साइकल से बस हॉस्टल जाने की कोशिश कर रहा था – एकदम झेंप गया।

“मैडम, ब्रेक लगाते तो खुद गिर जातीं। मैंने बचाया, थैंक यू तो बोलो कम से कम।”

“थैंक यू? Seriously? मेरी 20 हज़ार की सैंडल तूने खराब कर दी और थैंक यू बोलूं?”

“तुम्हारी सैंडल खराब हुई है, मेरी तो इज़्ज़त ही गिरा दी।" अर्जुन ने मुस्कराते हुए कहा।

चारों ओर हँसी गूंज उठी।

अनन्या के गाल गुस्से से लाल हो गए।

“You middle-class people have no manners!”

अर्जुन ने धीरे से कहा,
“और तुम rich people को अक्ल कम, attitude ज़्यादा होता है।”




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और यहीं से शुरू हुआ... एक ऐसा रिश्ता, जिसमें प्यार से पहले नफरत थी, और नफरत से पहले टक्कर।

rajukumarchaudhary502010

❤️ तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी

📖 भाग 2: नाम से नफरत, बातों से वार


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> कॉलेज का पहला दिन... और अर्जुन ने तय कर लिया था – "इस लड़की से जितना दूर रहूँ, उतना अच्छा है।"

लेकिन ज़िंदगी कब किसी की सुनती है?

अगले दिन क्लासरूम में बैठा ही था कि प्रोफेसर ने नाम पुकारा –

“अनन्या कपूर… और अर्जुन राठौर – आप दोनों मिलकर प्रेज़ेंटेशन बनाएंगे।”

“What the hell!” अनन्या ने फुसफुसाते हुए कहा।

अर्जुन मुस्कराया, “लगता है भगवान को हमारा झगड़ा पसंद आ गया।”

“Listen, I don’t like you. Don’t talk to me unnecessarily.”

“सच में? मुझे तो लगा तुम लाइक कर रही हो… वरना इतना ध्यान कौन देता है?”

अनन्या गुस्से से आँखें तरेरती है –
“I swear, ये प्रोजेक्ट खत्म होते ही तुमसे मेरा रिश्ता भी खत्म।”

“रिश्ता तो है ही नहीं… शुरू ही कहां हुआ था?”

सारी क्लास हँस देती है। अनन्या दाँत पीसती है। अर्जुन की मुस्कराहट गहरी हो जाती है।

दिल से नफरत शुरू थी… लेकिन किस्मत कुछ और चाहती थी।

rajukumarchaudhary502010

*Ek Paheli Si Thi*

Ek paheli si thi .. jise kabhi samjha hi nahi,
Raah mein thokar mili… par safar ko roka hi nahi.

Chali gayi wo, jo sabse haseen pal thi,
Bas dekha unhe… jee nahi paye.

Guzra zamana, dil bhar laaya,
Aur khud se hi kuch keh nahi paye.

Khushi thi bhi shayad kahin, par ehsaas na ho paya,

Woh thahri nahi...
Aur hum bhi kahaan ruk paye?

Jo sabse pyara tha nazara,
Woh mere naseeb mein likha hi nahi.

Sawan barsa… aankhon ne sab keh diya,
"Rahne do… chalo ab."
_Mohiniwrites

neelamshah6821