कर दिया खड़ा मुझे , कटहरे मे , ना वकील, ना दलील खुद जज बन गए।
माना की राज फिसल गए कुछ मुख से, पर इसके पीछे बात क्या थी ये तो जान लेती मुझसे। और आग लगाने वाले का मकसद क्या था ये तो जान लेती ।
छोटी बच्ची हो नहीं खुद समझदार हो , सोचो जो अपनो के सगे नहीं हो सके वो किसी और के क्या ही होंगे । खुद को कैसे इतना महान बना लेते लोग , जो दूसरों को दे देते इल्जामों के इतने रोग।
था इतना ही डर तो साथ हुए ही क्यूं थे, तन मन धन से करते वही जिसके लिए आए इस शहर थे।
चुप हूं क्योंकि दबा हुआ हूं कर्ज में तेरे , जो साथ दिया था बुरे वक्त में मेरे।
लेकिन बस हुआ अब ,नही मानता मैं इस खरीदी हुई अदालत को । सफाई देना मेरा काम नहीं क्योंकि भरोसा है मुझे मेरे चरित्र पर जो गवाही देता है मेरे इतिहास की ।