मैं और मेरे अह्सास  
रिश्ता
दर्द का रिश्ता भी सुहाना लगता है l
बातों से तो राबता पुराना लगता है ll
सब के नजरिए अलग अलग है कि l
नजरों से सीधा निशाना लगता है ll
होशों हवास में क़ब्ज़ा किया हो उसे l
सदंतर भुलाने में ज़माना लगता है ll
"सखी" 
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह