Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

अंधेरा हो रहा हैं

अंधेरा हो रहा हैं l
चमक खो रहा हैं ll

नई शुरुआत होगी l
उजाला बो रहा हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

उम्र बढ़ रही हैं
उम्र बढ़ रही है चलो गिले शिकवे दिल से छोड़ देते हैं l
भाईचारा के साथ सुकून की ओर रास्ते मोड़ देते हैं ll

मन के हारे हार और मन के जीते जीत यहीं सत्य l
अब हो ना पाएगा कुछ भी ख्यालों को झँझोड़ देते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आदत हो गई हैं
बिना बात के मुस्कराने की आदत हो गई हैं l
कौअे के का का से घर में दावत हो गई हैं ll

बातचीत की जगह सोसियल मीडिया ने ली l
खामोशी और सन्नाटे से चाहत हो गई हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

जिंदगी के सफ़र
जिंदगी के सफ़र का लुफ़्त उठा लेना चाहिए l
प्यार को दोनों हाथों से लुटा देना चाहिए ll

चार दिन की जिंदगी में जी भरके जी लो ओ l
जो भी गिला शिकवा हो मिटा देना चाहिए ll

एक एक मुकाम हौसलों के साथ बिताकर l
बिना शिकायत जीकर दिखा देना चाहिए ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

छुपा
पर्दा ना करो दुनिया से छुपा ही नहीं कुछ भी l
दोनों की मोहोब्बत में जुदा ही नहीं कुछ भी ll

न जाने कौन सी धुन सवार थी दिमाग़ में l
यार ने दूर जाते वक्त कहा ही नहीं कुछ भी ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मिजाज
मिजाज मौसम का बेईमान हो गया हैं l
अपनी ही मस्ती में सुधबुध खो गया हैं ll

बेलगाम रफ़्तार में आकर चौतरफ़ा से l
सन्नाटा फैलाके क़ायनात धो गया हैं ll

कई बार उफान का रूप ले लेता है कि l
उसके झपट में जो आया वो गया हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

राज-ए-दिल
राज-ए-दिल को ज़माने से छुपाए जाते हैं l
हाले दिल हर किसीको नहीं बताए जाते हैं ll

गैरो को तो मजा आ जायेगा सुनकर दास्ताँ l
अपनों के दिये ज़ख्म नहीं सुनाए जाते हैं ll

दर्दों ग़म के कारवाँ के साथ चलते चलते l
सालों से दिल में जुदाई बोझ उठाए जाते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सैयारा
ईश की दरियादिली से सैयारा गोद में आ गिरा l
बहुत शुक्रिया बेनमून ओ अनमोल तोहफ़ा है मिला ll

अब ज़िंदगी खुशी खुशी बीत जाएंगीं जब के l
सुने सुमसाम गुलशन में खूबसूरत गुल है खिला ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सफाई
वो दोस्ती ही क्या जिसमें सफाई देनी पड़ेगी l
सच साबित करने के लिए सौगंध लेनी पड़ेगी ll

वादा देकर मुकर जाने की कोशिश ना करना l
नहि तो मोहब्बत की अदालत में पेशी पड़ेगी ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मसला
मसला ये नहीं के वक्त नहीं l
पहली सी मोहब्बत न रहीं ll

ज़नाब दिल फेंक निकले कि l
शायद दिल लगा बैठे कहीं ll

महफिल में जहां सनम बेठे l
नजरें भी जा पहुँचे है वहीं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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