Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

चाय तो सिर्फ़ बहाना है बातें करने का l
जरिया है मन को खुशियों से भरने का ll

मोका भी है दस्तूर भी है साथ बैठ के l
खुशनुमा मौसम के नशें में सरने का ll

हरियाली छाई है बहुत दिनों बाद ये l
खूबसूरत शमा के लुफ़्त को हरने का l

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
घरौंदा
घरौंदा मेरी यादों का कश्ती का किनारा हैं l
खुशी से मुस्कराते हुए जीने का सहारा हैं ll

पतझड़ में भी बसंत का मज़ा देता है तो l
कैसे भी हो रिश्ता शिद्दत से निभाना हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
सपने सात रंग के
सपने सात रंग के अलबेला अजनबी दिखा गया l
ख्वाबों और ख्यालों को हकीकत में मिला गया ll

जन्मों जन्म की प्यास बुझाने के लिए वो
आज l
सपनों में निगाहों से प्रेम का प्याला पिला गया ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
फूल की अभिलाषा
फूल की अभिलाषा है क़ायनात को महकाता रहे l
सुगंधी बयारों में घोलके सारा ब्रमांड बहकाता
रहे ll

मातृ भूमि के वीर सपूत की शहादत पर चढ़के
यूही l
राह में पुष्पों की जाजम बिछाकर सर सरहाता
रहे l
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

रात बरसात की
हुस्न आसमाँ से छलका रही हैं l
रात बरसात की बहका रही हैं ll

शीत बयार की लहरें चौतरफा l
से फिझाओ को महका रही हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

कविता के सफ़र में कवि चाँद सितारों से आगे निकल गया l
आकाशगंगा की अद्भुत क़ायनात को देखकर बहल गया ll

आज खूबसूरती का मैला लगा हुआ लगता है की कवि l
महफिल में एक से बढ़कर एक हुस्न को देख बहक गया ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

हुस्न के आने से सुहानी शाम का मंज़र ख़ुशनुमा हो रहा हैं l
आज जीभर के बातें करेंगे दिल ने दिल
से खुशी से कहा हैं ll

बड़ी बेताबी से इंतजार कर रहे हैं एक
प्यारी मुलाकात का l
अब तो चैन ओ सुकून मिले बरसों जुदाई का बहुत दर्द सहा हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

दिल पे तिरे आहट के निशान आज भी मौजूद हैं l
मिरे बेइन्तहा चाहत के निशान आज भी मौजूद हैं ll

ताउम्र हर लम्हा साथ गुजारे घर के दरवाजे और l
दीवारों पे तिरे हाथ के निशान आज भी मौजूद हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

नाम क्या है सनम बता मेरा दिल से एक आवाज़ आई ll
आज ख़ुद से रूबरू होकर ख़ुद की ही
पहचान करवाई ll

पहली बार ख़ुद को जानकर ख़ुद का अह्सास हुआ हैं l
तसल्ली से दिल ने चैन और सुकून की साँसहै पाई ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अंजुमन में सुना ग़ज़ल जब आगोश में दिलबर हैं l
निगाहें नशें में छलकती, आज ये क्या चक्कर हैं ll

देखो तो लम्बी सेर पर निकली है जल परियां l
चाँदनी शीत रात में हुस्न से चमकता समंदर हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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