Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

देश रक्षक
देश रक्षक के हौसले बुलंद होते हैं l
जान बाजों के पंख अनंत होते हैं ll

वतन के वास्ते मरने या मिटने के l
उनके जज्बात भी अभंग होते हैं ll

भारत माता की रखवाली करते हुए l
वीरों के हाथों में सदा तिरंग होते हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
जीवन अनुभव
जीवन अनुभवों का जंगल हैं l
सुख और दुख का बंडल हैं ll

अँधेरों और उजालों में किये l
अच्छे प्रयत्नों का मंडल हैं ll

मंज़िल तक पहुंचने के लिए l
हमराही का साथ संदल हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मेला
जिंदगी आती जाती साँसों का मेला हैं l
क़ायनात में कुछ सालों का डेरा हैं ll

सुनो जलजले से कम नहीं हैं इश्क़ l
दिल की दुनिया को मुकम्मल घेरा हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

संगम
दो दिलों का संगम हो रहा हैं l
होशो हवास को खो रहा हैं ll

निगाहों की मस्ती को दिल में l
नशीली मोहब्बत बो रहा हैं ll

जज़्बातों को भड़काने के बाद l
प्यारी मदहोशी में सो रहा हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चुपके से कानों में ये क्या कह गई l
आकर सपनों में ये क्या कह गई ll

हर जनम में मिलते रहेगे यही पे कहीं l
महकी फिझाओ में ये क्या कह गई ll

आँखों के इशारों से पिलाते रहते हैं l
नशीले प्यालों में ये क्या कह गई ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

बहती सर्द हवाएँ चुपके से कानों में
ये क्या कह गई l
कुछ ज्यादा ही जल्दीमें बात पतेकी
कहकर बह गई ll

अच्छा है खुले आम न कहीं कानों में
कहने वाली l
दिल में चुभने वाली बात चुपचाप से
आज सह गई ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मौसम अपनी खुमारी क़ायनात
को दिखा रहा हैं l
तरीके औ सलीके से जीनेका
सबक सिखा रहा हैं ll

खुमार इस तरह चढ़ा है कि
बदलियों का झुण्ड l
ज़मीं और आसमान को
मुकम्मल मिला रहा हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सागर की लहरें
बहना है सागर की लहरों के संग संग l
देखना है पानी के बहाव का रंग ढ़ंग ll

मदमस्त फिझाओ की हवा के साथ l
होती है पूनम की भरती में तंग तंग ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चाँद के उस पार
चाँद के उस पार मनमोहक कायनात
बसानी हैं l
ईमानदार, सदाकत और शरीफों से
सजानी हैं ll

बाग, बगिया, महकते हुए फ्वारै,
स्वप्न नगरी l
रंगबिरंगी, सुगंधित और खुशबूदार
बनानी हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सर्द हवाएँ फिझाओ में गुलाबी ठंड
लेकर आई हैं l
साथ अपने साजन का प्यारभरा
सन्देशा लाई हैं ll

मौसम के बदलने का अंदाजा
आने से आज तो l
बाद मुद्दतों के धड़कनों ने सुकूं
की सांसे पाई हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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