अच्छा था कि में बच्चा था।
न कोई भेद समझ आता था।
लड़ाई झगड़े पल में भूल जाता था।
रहीम हो या श्याम,
मुझे सिर्फ नजर आता यार।
मुझे भी सिखाया गया था
रामायण और महाभारत
पर कभी नहीं सिखा,
कुरान से नफरत करना।
धर्म कोई भी हो
हमेशा इंसान बनना सिखा।
बड़ा हुआ पर अफ़सोस
फंस गया उन ज़ालो में
पैसों ने, स्वार्थ ने, लालसा ने
भुला दी जिंदगी की अनमोल
इंसानियत को।
काश फिर से में बच्चा होता
नादान, निस्वार्थ और निर्मल।