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तुम्हें छूना नही चाहती मगर देख लेना चाहती हूँ तुम्हें अपना नही बनाना चाहती मगर तुम्हारी बन जाना चाहती हूँ ये खामोशियाँ ये दर्द ये घुटन सब तेरी ही दी हुई अमानत है मैं जीना चाहती हूँ मगर अब बस मर जाना चाहती हूँ ।। मीरा सिंह
लेकर शांति सभ्यता का संदेश तू जो धरती पर आया खिले हर बाग के फूल धरती का कण-कण मुस्काया। । बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं
मां
बहुत हसरत है तेरी जुबाॅ से माँ सुनने की।
मां तुझे सलाम
दिल के जज्बात को अल्फाज दिए जाए जरूरी तो नही जिससे हो इश्क वो साथ ही हो जरूरी तो नही हर इश्क मुकम्मल हो जाए जरूरी तो नही हर दर्द आंखों से छलक जाए जरूरी तो नही जो मेरी रूह में समाया है उसे भी मुझसे मोहब्बत हो जाए जरूरी तो नही।। मीरा सिंह
निस्वार्थ प्रेम में खोकर मैनें तुमको जीवन का गीत लिखा तुमको अपना मनमीत लिखा निस्वार्थ प्रेम में खोकर मैनें तुमको न छूने की इच्छा ना ही तुमको है पा लेना तुमसे मिलकर जीना सीखा तुमको जीवन का गीत लिखा निस्वार्थ प्रेम में खोकर मैनें आदर्श वाक्य ये जीवन का तुममें है सिमटकर रह जाता जब याद तुम्हारी आती है अश्कों से दामन भर जाता आठ प्रहर जो जीवन में इस समय चक्र सा चलता है खुद को अश्कों से भीगा लिया तुमको जीवन का सार लिखा निस्वार्थ प्रेम में खोकर मैनें। । मीरा सिंह - Meera Singh
तेरी नन्हीं आंखों से मैनें ख्वाब सुनहरे देखे है तेरे छोटे होठों से मैनें माँ सुनने के सपने देखे है पता नही है अब तक मुझको तू कैसे चिल्लाता है अपनी गोदी में लेकर तुझको तेरा माथा चुनने का सपना देखा है। मीरा सिंह
Hey
वो खुश है किसी और के संग मै खुद को समझाऊ कैसे वो मेरा है पर मेरा नही मैं दिल को मनाऊ कैसे हजारों दफा मोबाइल में टाइप कियाउसका नम्बर मगर मैं उसे फोन लगाऊ कैसे कभी जहाँ साथ में दो पल बिताए थे वही से उसे याद किए बिना गुजर जाऊँ कैसे दिल चाहता है उसे गले लगाकर रो लूँ पर वो किसी और का है मैं ये भूल जाऊँ कैसे उसके नाम का पासवर्ड लगाकर रखा है मोबाइल में वो मैं सबको बताऊँ कैसे वो किसी और का हो बैठा है मैं ये मन को समझाऊ कैसे जो दर्द उसने दिया मुझे मैं भी वही दर्द उसे दे जाऊँ कैसे मैं किसी और की हो जाऊँ कैसे जिन आंखों से देखे है ख्वाब उसके उन पलकों को मैं झपकाऊ कैसे मैं खुद को समझाऊ कैसे।। मीरा सिंह
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