बजह भी दे दिया करते. . .
***
मेरी आँखें ही थीं जो हमेशा से सच बोलीं,
अगर निकलते मुहं से बोल तो शायद झूठ कह देते.
वह मेरी कलम ही तो थी, जिसने लिखा हमेशा सच,
अगर होता कम्प्यूटर/मोबाइल तो शायद शब्द बदल जाते.
एक जो तुम हीं तो थीं जो हमकदम न बन सकीं,
गर होते हौसले बुलंद तो पग तुम्हारे यूँ बदल न जाते.
दुआओं ने मेरी मांगे थे सितारे तुम्हारे आँगन में,
बात थी नियति की, वरना, बीच में वे क्यों लटक जाते.
तसल्लियाँ तो देते हैं सब, ज़िन्दगी जीने का नाम है,
भला होता उनका जो बजह जीने की दे दिया करते.
-समाप्त.
Sharovan.