आज टीवी ओन किया तो खबर ये दिखी कि लखनऊ में माओं और बहनों पर दंगा फसाद का केस हो गया तो अपनी ये गज़ल सामने आ गयी देखियेगा।
गजल
मुल्क की हकूमत को कुर्सीयां समझतीं हैं।
हम अवाम हैं हमको सिसकियां समझतीं हैं
शह्र के खुदाओं ने आग क्युं लगायी है
खाक हो गयी हैं जो बस्तीयां समझतीं हैं
हर तरफ तबाही का ये हजूम कैसा है।
उठ रही किसानों की अर्थीयां समझतीं हैं
आप का महल वो जो हाथ से बनाते है
उन गरीब लोगों को झुग्गीयां समझतीं हैं
आज एक इन्सां जो आप का मसीहा है।
आप तो नहीं उसको लड़कियां समझतीं हैं।
राजीव कुमार
और साथ में ये तस्वीर विश्व पुस्तक मेला नयी दिल्ली की भी याद आयी