Quotes by अनिल श्रीवास्तव अयान in Bitesapp read free

अनिल श्रीवास्तव अयान

अनिल श्रीवास्तव अयान

@anilshrivastava4993


आज टीवी ओन किया तो खबर ये दिखी कि लखनऊ में माओं और बहनों पर दंगा फसाद का केस हो गया तो अपनी ये गज़ल सामने आ गयी देखियेगा।

गजल

मुल्क की हकूमत को कुर्सीयां समझतीं हैं।
हम अवाम हैं हमको सिसकियां समझतीं हैं

शह्र के खुदाओं ने आग क्युं लगायी है
खाक हो गयी हैं जो बस्तीयां समझतीं हैं

हर तरफ तबाही का ये हजूम कैसा है।
उठ रही किसानों की अर्थीयां समझतीं हैं

आप का महल वो जो हाथ से बनाते है
उन गरीब लोगों को झुग्गीयां समझतीं हैं

आज एक इन्सां जो आप का मसीहा है।
आप तो नहीं उसको लड़कियां समझतीं हैं।

राजीव कुमार

और साथ में ये तस्वीर विश्व पुस्तक मेला नयी दिल्ली की भी याद आयी

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बुद्ध की बातें हैं अच्छी-अच्छी
कोई बुद्ध ही करे तभी अच्छी

खूनी आंखें कैसे दें दिलासा
क़ातिल मुंह बातें क़त्ल की अच्छी

अक्स-ए-ज़िंदगी से पैदा मानी
जो है सो यही, बुरी या अच्छी

कब तक चलें रस्सी पर इस तरह
बदल कर हो तस्वीर तो अच्छी

श्यामल आएगा कब वह ज़माना
शुरू हों सकें मुलाकातें अच्छी
--- © श्‍याम बिहारी श्‍यामल

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तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।

दिन-दिन भर ज़ुल्मत है, रात है
शब-भर चकाचौंध खुराफ़ात है

चांद पर नाखून के खूनी निशान
चांदनी से दर्दभरी मुलाक़ात है

पड़ रहा इल्मियों का शौक़ भारी
शायरी में अब कहां जज़्बात हैं

खामोशी यह बेशक़ बेज़ान नहीं
रग-रग में बेचैन सवालात हैं

श्यामल से क्या-क्या हासिल मुमकिन
पास उसके ज़माने-भर की बात है
---- © श्‍याम बिहारी श्‍यामल

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मिल जाए आसानी से जो वो मंज़िल कैसी
उठ जाए सुबह से पहले वो महफ़िल कैसी

वक़्त-ए-आख़िर मुक़र्रर है तेरा भी मेरा भी
तेरे सितम से जो मिट जाए तो मेरी हस्ती कैसी

थक कर रुका हूँ मैं हार कर नहीं
फिर तेरे गलियारों में ये ख़ुशी कैसी

तीरगी से जूझ रहा था अब तक मैंने माना
पर देख मेरे आसमान में ये सुर्ख़ी कैसी

डूबे जो साहिल पे आ कर वो कश्ती कैसी
जला कर घरों को जो रौशनी करे वो बस्ती कैसी

साहिब-ए-मसनद है वो कौम का सुनते आये हैं
पर जो फ़िरकों को लड़ाए वो सरपरस्ती कैसी

मिल जाए आसानी से जो वो मंज़िल कैसी....

•इश्तियाक (व्यंग्य चित्रकार)

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सबकी अहमियत है इस जहां में
दिनों ने मिलकर साल बदल दिया।

ग़ज़ल: غزل
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दोस्तो, आदमी और ज़िंदगी की बेबसी को उकेरती पेश है मेरी आज की लिखी ग़ज़ल, अर्ज़ किया है-

2122-2122-2122-212

कर चुके सब काम, बाक़ी ज़िंदगी में क्या करें
रोज़ो शब अब हम नफ़स की नौकरी में क्या करें //१

کر چُکے سب کام، باقی زِندگی میں کیا کریں
روزہ شب اب ہم نفس کی نوکری میں کیا کریں //۱

गुम हुए हम आगही ए बेख़ुदी में, क्या करें
कुछ नहीं दिखता है ऐसी तीरगी में, क्या करें //२

گم ہوئے ہم آگہی اے بیخودی میں، کیا کریں
کچھ نہیں دکھتا ہی ایسی تیرگی میں، کیا کریں //۲

वक़्त ख़्वारी के सिवा पीरी में अब क्या काम है
रह के भी अब सोने की इस झोंपड़ी में क्या करें //३

وقت خواری کے سِوا پیری میں اب کیا کام ہے
رہ کے بھی اب سونے کی اس جھونپڑی میں کیا کریں //۳

अब निकल भी तो नहीं सकती हैं दामे ख़ल्क़ से
मक्खियाँ जो गिर गई हैं चाशनी में, क्या करें //४

اب نکل بھی تو نہیں سکتی ہیں دامے خلق سے
مکّھیاں جو گر گئی ہیں چاشنی میں کیا کریں //۴

ऐ ख़ुदा कुछ उनका भी सामान कर दे कस्ब का
मुब्तला जो हैं सुख़न ओ शाइरी में क्या करें //५

اے خُدا کُچھ اُنکا بھی سامان کر دے کسب کا
مبتلا جو ہیں سخن و شاعری میں کیا کریں //۵

गर न डालें मनचलों पे डोरे अपने हुस्न का
तो बुताँ रहके जुदा ख़ुश पैकरी में क्या करें //६

گر نہ ڈالیں منچلوں پے ڈورے اپنے حُسن کا
تو بُتاں رحکر جُدا خوش پیکری میں کیا کریں //۶

वो तो अब मर जाने की धमकी से भी डरता नहीं
मर न जाएँ हम तो ऐसी दोस्ती में क्या करें //७

وہ تو اب مر جانے کی دھمکی سے بھی ڈرتا نہیں
مر نہ جائیں ہم تو ایسی دوستی میں کیا کریں //۷

मसअला सबका वही है, ग़ुरबा हों, ज़रदार हों
वो महल में क्या करें, हम झोंपड़ी में क्या करें //८

مسئلہ سبکا وہی ہے، غربا ہوں، زرداری ہوں
وہ محل میں کیا کریں، ہم جھوپڑی میں کیا کریں //۸

उम्र काटी बूदगी के ही अँधेरों में तमाम
आ के भी हम दो घड़ी को रौशनी में क्या करें //९

عمر کاٹی بودگی کے ہے اندھیروں میں تمام
آ کے بھی ہم دو گھڑی کو روشنی میں کیا کریں //۹

बढ़ गई खूँ में शकर तो 'राज़' मय भी है हराम
अश्क आशामी के जुज़ हम तश्नगी में क्या करें //१०

بدھ گئی خوں میں شکر تو راز مے بھی ہے حرام
اشک آشامی کے جز ہم تشنگی میں کیا کریں //۱۰

~राज़ नवादवी
(एक अंजान शाइर का कलाम)

#راز نوآدوی
(ایک انجان شاعر کا کلام)

बाक़ी- शेष
रोज़ो शब- दिन रात
नफ़स- साँस
आगही ए बेख़ुदी- चेतना से आगे निर्विकारता का ज्ञान
तीरगी- अँधेरा
वक़्त ख़्वारी- समय को खाना
पीरी- बुढ़ापे
दामे ख़ल्क़- सृष्टि की क़ैद
क़स्ब- धनोपार्जन
मुब्तला- किसी काम में लगा होना
बुताँ- सुंदरियाँ
सुख़न- काव्य
ख़ुश पैकरी- शारीरिक सौंदर्य
मसअला- समस्या, विषय
ग़ुरबा- ग़रीब लोग
ज़रदार- धनवान
बूदगी-अस्तित्व
खूँ- ख़ून

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कौन सी शुभकामनाएं ?
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--महेश कटारे 'सुगम'
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कौन सी शुभकामनाएं
व्यर्थ न बुद्धू बनाएं

दिख रहीं हैं आपको क्या
शुभ कहीं संभावनाएं

कामनाएं हैं प्रदूषित
संक्रमित हैं भावनाएं

हर तरफ़ बढ़ने लगी हैं
वर्जनाएं वर्जनाएं

क्या बताओ कम हुई हैं
आमजन की यंत्रणाएँ

मुफ़्त में बंटने लगीं क्या
अस्पतालों में दवाएं

दफ्तरों में रुक गईं क्या
घूसखोरी की प्रथाएं

बंद थानों में हुईं क्या
बेबसों पर यंत्रणाएँ

क्या किसानों की हुईं कम
कुछ सुलगती वेदनाएं

कौन सी पूरी हुई हैं
राहतों की घोषणाएं

क्या बहारें आ गई हैं
जा चुकी हैं क्या ख़िज़ाएं

क्या हुआ बदलाव ऐसा
जिसकी हम खुशियां मनाएं

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जाते हुए साल,
दे गया तू
कितने सवाल
कितने मलाल,
कितने सवाल,

दलाल सभी
मीडिया हाऊस बने
शेर की खाल में
कितने माउस तने
देश को जिंदा
धारा 144 रखें
कायदा कानून
विरोधों में जचें

सरकार ही देश को
चलाने लगी।
जनता को कीमत
बताने लगी।
काहे की जनता
जनार्दन रही।
काहे को जनता
सिर माथे रहे।
अब तो सब
हाय हाय।

उन्नीस ने
उन्नीस हैसियत दिखाई।
बीस आएगा
बीस की देगा मलाई।

देश की जनता
सिर्फ वोट है।
मंत्रियों की गंदी
फटी लंगोट है।
देश के भाग्य विधाता
महलों में रहें।
सरकार उनसे
कभी कुछ न कहें।

उन्नीस ने बीस की
बानगी दे गया।
की मुद्दों की
रवानगी दे गया।
हिटलरी चोला
जो खोला गया।
जनता के मुंह मे
अफीम घोला गया।
जमीनी मुद्दों को
धर्म का पाखंड खा गया।
कुर्सीधारी को भी
बड़ा मजा आ गया।

कहने को बहुत
कुछ विशेष है।
अभी तो जिल्द है
पुस्तक बांचना शेष है।

अनिल अयान

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खाली बैठेंगे तो तू भी याद आएगा।
नये साल में किसी प्रेमिका के जैसे।