दिन-दिन भर ज़ुल्मत है, रात है
शब-भर चकाचौंध खुराफ़ात है
चांद पर नाखून के खूनी निशान
चांदनी से दर्दभरी मुलाक़ात है
पड़ रहा इल्मियों का शौक़ भारी
शायरी में अब कहां जज़्बात हैं
खामोशी यह बेशक़ बेज़ान नहीं
रग-रग में बेचैन सवालात हैं
श्यामल से क्या-क्या हासिल मुमकिन
पास उसके ज़माने-भर की बात है
---- © श्याम बिहारी श्यामल