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Tomorrow is important match. king Kholi vs thala dhoni #dont miss it
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https://www.matrubharti.com/book/19973567/the-colors-of-a-peacock-feather-poetry-collection
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મોરપંખના રંગો કાવ્ય સંગ્રહ આજે publish થઈ છે
ખુબ આભાર માતૃભારતી 🙏
“बाबू मोशाय! दो कटिंग देना, और वो बिस्कुट भी जो तुम छुपाकर रखते हो,”
गोलू ने हँसते हुए आवाज़ लगाई।
गोलू—आठवीं का छात्र और मोहल्ले का सबसे शरारती बच्चा।
बाबू मोशाय—साठ पार के बंगाली दादा, जो पिछले तीस सालों से ये छोटा सा चाय का खोखा चला रहे थे।
उनकी चाय में कुछ तो था... नशा नहीं, मगर यादें घुलती थीं उसमें।
आज की सुबह थोड़ी अलग थी। चाय के स्टॉल पर भीड़ नहीं थी, और बाबू मोशाय एक तस्वीर में खोए हुए थे।
गोलू पास आया, देखा तो फोटो में एक जवान बाबू मोशाय और एक औरत... हँसते हुए।
“कौन है ये?” गोलू ने पूछा।
बाबू मोशाय मुस्कराए। “शांति। मेरी पहली और आख़िरी मोहब्बत। पचास साल पहले स्टेशन पर चाय पीते वक्त मिली थी। फिर नौकरी, शहर, दूरियाँ... लेकिन मैंने हर दिन उसके लिए एक कप चाय ज़रूर बनाई। आज... उसकी बरसी है।”
गोलू कुछ नहीं बोल पाया।
बाबू मोशाय ने दो कप चाय बनाई।
एक खुद पी, दूसरा तस्वीर के सामने रख दिया।
“वो अब भी यहीं बैठती है, बस तुम लोग देख नहीं पाते।”
इंतज़ार
वो लम्हा... जब तेरे क़दमों की आहट
मिट्टी की साँसों से टकराई थी,
मैंने वक़्त की चुप दीवारों पर
तेरा नाम उकेरा था — सांसों से।
चाँदनी ने मेरी चुनरी ओढ़ ली,
और तारे मेरी आँखों में उतर आए,
पर तू...
जैसे वादा करके भी
ख़्वाबों की गलियों में ग़ुम हो गया।
मैंने तेरे नाम के अक्षर
हर शाम की दहलीज़ पर रखे,
कि शायद सुबह
तेरे हाथों की रौशनी उन्हें छू जाए।
हर मौसम तुझसे कुछ कह कर गया,
कुछ रूठ कर, कुछ मुस्कुरा कर,
पर तू नहीं आया —
जैसे इंतज़ार भी थक कर
किसी कोने में सो गया हो।
अब बस तेरी ख़ुशबू रह गई है
इस पुरानी रज़ाई में,
जिसे मैं हर रात सीने से लगाती हूँ —
कि तू लौटे,
और मैं फिर से
इंतज़ार करना सीख लूं।
— Fazal Esaf
विजयाची होळी पेटवली!!
एक वाऱ्याची झुळूक आली,
माझ्या अधोगतीची गाथा रंगली.
प्रबळ इच्छाशक्ती माझी मरण
पावली,
जणु दिव्याची ज्योत चोरली.
आयुष्याने कैसे खेळ मांडले, सळसळते रक्त थंड पाडले.
जणु माझ्यातले चैतन्य हरवले,
कोण माझ्यातले मकरंद चोरले.
ऐसे कैसे मन भरकटले,
जेणे सप्तरंगी स्वप्न जळाले.
जणु माझ्यातले संगीत हरवले,
कोण माझ्यातले स्वर चोरले.
एका शुद्र वादळाने विझवले,
ऐसे माझे कर्तुत्व जाहले.
जणु माझ्यातले तेज हरवले,
कोण माझे सुगंध चोरले.
जबाबदाऱ्यांपासून माझे देह पळाले,
जणु माझ्यातले कर्तव्य हरवले, कोण माझे उत्साह चोरले.
फक्त लाचारी उरली,
कष्टाची उधारी वाढली.
इथेच ही अधोगतीची गाथा संपली.
इंद्रधनुच्या सप्तरंगानी मी पुन्हा स्वप्ने फुलवली,
कष्टाने वाट सजवली,
चुकांनी दिशा दाखवली,
माझी झेप उंचावली,
व विजयाची होळी पेटवली.
क्या आपने कभी सोचा था कि शक की आग इतना खतरनाक रूप ले सकती है?
Whispers of Crime पेश करता है:
"तंदूर मर्डर केस — प्यार, राजनीति और जलती हुई चुप्पी"
एक सच्ची घटना, जो आज भी हमारे समाज, कानून और राजनीति पर सवाल उठाती है।
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https://www.matrubharti.com/book/19973562/whispers-of-crime-1
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