✧ जीवन — नदी की तरह ✧
“जो बहता है, वही पहुँचता है।”
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
तुम बहती नदी के समान हो — कभी इस किनारे, कभी उस किनारे जाने की कोशिश करते हुए। जब तुम परवाह के साथ बहते हो, तब पहली उपलब्धि होती है, क्योंकि यह तुम्हारी ज़रूरत का परिणाम है। पर जब तुम उल्टी दिशा में बहने का प्रयत्न करते हो, तब यह प्रयत्न तुम्हारी आध्यात्मिकता की परीक्षा बन जाता है।
यह उल्टा बहाव तपस्या है। यहाँ विजय नहीं, केवल हार है — और यही हार इस यात्रा की कुंजी है। जब तुम हार जाओ और फिर भी संघर्ष जारी रखो, तब तुम अहंकार का विघटन करते हो; तुम स्वयं को तोड़कर पुनः गढ़ते हो।
धार्मिक व्यक्ति यही हार पाकर भी उसे विजय कह देता है — वह आत्मसमर्पण नहीं करता, बल्कि हार को स्वांग बनाकर जीवन का व्यवसाय बना लेता है।
पर जिसने सच्चे अर्थों में हार को स्वीकार कर लिया, वह नदी के साथ बह जाता है। समर्पण उसके भीतर घटता है।
तब नदी उसे जहाँ ले जाए, वह बस बहता है, अनुभव करता है, आनंद लेता है। यही बहाव आत्मा का बोध है — और यही बहाव उस महासासे वीगर तक ले जाता है, जिसकी कल्पना करना असंभव है। वही महासागर परमात्मा है।
“यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रं प्राप्य नामरूपे विहाय तिष्ठन्ति एवम्।
विद्वान् नामरूपाद्विमुक्तः परं पुरुषं उपैति दिव्यम्॥”
(छांदोग्य उपनिषद् 6.10.1)
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 ( अज्ञात अज्ञानी)
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