आज,, लबों,,,,पे,, बात,,,,आ,,,,ही,,,, गई,
आया हुं। में आपके सामने आईना बनके
मातृभारती के फलक पर
प्रेम करने नहीं,,,!,,, प्रीत बांटने आया हूं
कवि, ओर, कवियत्री। रचनाएं और साखियां
पढ़ने और भावनाएं लेने आया हूं
भारती के परिवार में खुशबू की तरह महकने आया हूं
सिसरे पानी की तरह सिल्क ने नहीं
सरिता की तरह सागर में समाने आया हूं
कहीं रहो तुम,,,,,,?, कहीं रहे हम,,,,!
इस फलक पर हमारी खुदाई मीठे लफ्जों में बांटने आया हूं
बस,,,,,! इस समुंदर के सैलाब में
आंधी नहीं रवि की सुनहरी किरणें बिशाने में आया हूं
लेखन काल में हमारी कलम उठती नहीं जज़्बात के लिए
और नहीं लिखेंगे बंटवारे की,, बूं,,,, की,,,, बगावत के लिए
समंदर की तरह अपनी सोच रखो रखेंगे
हम आए हैं इस जहां में
जुगनू बन के चले जाएंगे
#હોઠ