वो भी है
राज के कुकुरो की अलग ख्याती है
क्भोगन को भोग है रोकन को कोई नही
हासिये पर तो दुमिल कुत्ते है।
दोनो यथार्थ नही पर भूखे है
आखिर मानवता क्यो नही समझती
कि वो जिना चाहते है।
पंछी को तो अम्बर प्यारा है पर
धनी को पिजंर बन्द मिठ्ठू
मुफ्त गगन में मुफ्त का गायन है।
पिंजरे में डर का गायन यथार्थ नही है
समझ नही आता कि धनी क्यो नही समझते
कि वो भी मधुर गाते है
मनुष्य को भूख लगी है
तो जरुरी नही वो मानस ही खाये।
अपनी शक्ति के लिए
माँ की शक्ति का हनन यथार्थ नही।
आखिर चमडे का भूखा क्यो नही समझता
स्वामी की तिसरी आंख उसे देख रही है।