एक जंगली पौधा सा है "उम्मीदें"...
बिना देखभाल के जी जाते हैं
बिना सहारे के तने रहते हैं
तेज़ हवाओ से भी टूटते नहीं
उगते वहीं जहाँ रोपा नहीं गया ,
खिले वहीं जहाँ कुछ न मिला,
किसी के कर्कश बातों से आहत होके,
सुख गए शब्द,आंसू और भाव मन के,
बची रह जाती है तो बस "उम्मीद"
ये स्मृतियों के जल से सींची जा रही,
तभी, ना चाहें तो भी बढ़ती जा रही