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Sunita bhardwaj

Sunita bhardwaj

@124suradhey


रक्षा बंधन की अहमियत उन बहनों से पूछो....
जिनके पास भाई तो हैं पर दूरियों चलते....
वो उनको सिर्फ यादों में ही राखी बांध पाती हैं।

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"राखी की डोर"

बांधी थी जो रेशम की डोरी,
नन्हे हाथों से कभी,
वो डोर आज भी संभाले हैं हर वादा चुपचाप अभी।

ना हर बार मिल पाते है,
ना हर बार कह पाते है
पर दिल में ये जो रिश्ता है,
वो शब्दों से कब डर पाते हैं?

राखी सिर्फ धागा नहीं होती,
ये तो दुआओं का गीत है,
हर बहन की चुप दुआं में में,
भाई की हिफाजत की रीत है,
तो चलो बांध दे इस बार भी
एक वादा, एक हंसी बात,
जहां भी रहे बहन भाई,
वो रहे सदा एक_ दूजे के साथ ।
- Sunita bhardwaj

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"एक राखी दूरियों के नाम"

न हाथों में राखी बांध पाई,
न माथे पर तिलक लगाया,
पर दिल ने आज भी हर साल की तरह,
तेरे लिए वो ही प्यार सजाया ।

तेरे बिना सुना सा हैं ये त्यौहार,
पर यादें तेरी हर कोने में है।
वो बचपन की शरारतें, वो लड़ाई _ झगड़े,
आज भी मेरे आंखों में हैं।

तेरे लिए दुआओं का थाल सजाया है,
रिश्ते की मिठास फिर से जगाई है,
जैसे तू सामने बैठा हो मेरे,
वैसे ही दिल ने बात निभाई है।

तो ये ले ले ये राखी हवा के संग,
जो मेरे आशुओं से भीगी हो,
भले ही मैं पास नहीं आज,
पर मेरी रूह तुझसे जुड़ी है।
- Sunita bhardwaj

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कभी आंसुओं में मिले, कभी हसी में छुप गए,
कभी खामोशी में थे कभी बातों में घुल गए...

हर लम्हा तेरे साथ एक किताब सा लगता हैं जैसे हर पल में तेरा नाम लिखा रहता हैं...
जिंदगी की सफर में रास्ते बदलेंगे ज़रूर,
पर दोस्ती का ये ये रिश्ता _कभी ना होगा कमजोर....


- Sunita bhardwaj

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"दोस्ती का रंग"

फूलों में रंग हैं, लेकिन खुशबू दोस्ती से आती हैं,
चांद में रोशनी हैं, चांदनी तो यारी निभाती हैं....

ना जाने किस जनम का रिश्ता हैं ये _
एक मुस्कान में सिमटा लिखा किस्सा है ये....

तेरे हर आशु पे मेरी दुआ रहे,
तेरे हर सफर में मेरा साथ छुपा रहे....

छोटी छोटी बातें हो या बड़ी सी कहानी,
दोस्ती में बस तुम हो, और मेरे दिल की रवानी...
- Sunita bhardwaj

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जहां तन्हाई हों और दिल घबराए,
कान्हा वही, कान्हा वहीं आके खुद को छुपाएं
तेरे सांसों की जुबान समझते हैं हम,
तेरे बिन कहे भी हर दर्द से लड़ते हैं हम
- Sunita bhardwaj

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एक छोटी सी गली एक आंगन का कोना,
जहां मां के हाथों का खाना होता था सोना,
घर तो एक महक हुआ
ख्वाब सा हुआ
- Sunita bhardwaj

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भीड़ में आई हु, तो तन्हा लगना तो लाजमी है।
पर याद रखना _
कान्हा भीड़ में भी मेरे साथ रहना हैं।
जिन आंखों में आशु है, उसका रंग सबको दिखाई नहीं देता,
पर जिनके पास कान्हा हो उन्हें, कभी खुद से गिला नहीं रहता।
- Sunita bhardwaj

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("भीड़ में तन्हा")

भीड़ में हूं, पर दिल अकेला रहता हैं,
मुस्कुराहटों के पीछे कुछ अंधेरा सा छुपा रहता हैं।
हर चेहरा कुछ कहकर भी अनजान लगता हैं,
कोई पास होकर भी, दिल से दूर का अफसाना लगता हैं।

दिल कहता है किसी से कह दूं.... "सुन लो ना मेरी बात",
पर शब्दों का भार भी अब तो लगता हैं एक सजा का साथ,
मां के हाथ, घर की रौशनी फिर से आंखों में छुप जाती हैं।

एक पल को लगता हैं ___काश कोई होता यहां, जो आंखों में देख के कह देता,
"तू अकेली नहीं, मैं हूं ना...."
(सुनीता)

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("यादों का घर आंगन")

छुप छुप के आशुओं से बात करती है रात,
यादों के झरोखे से झांकती है हर बात।
मुस्कान है चेहरे पर दिल में एक नमी है,
हर हसने वाले पल के पीछे, छुपी कुछ कमी है।

फूलों की तरह बिखर गए कुछ रिश्ते राह में,
कुछ खुशबुआ रह गई यादों की चाह में।
आंखों में आशुओं का साहिल पर लबों पर गीत हैं,
दिल दर्द में डूबा है पर चेहरा अभी भी मिट हैं।

वो वक्त, वो लोग, वो बाते अधूरी सी लगती हैं,
जैसे कहानी अधूरी हो यादें पूरी लगती हैं।
फिर भी चल पड़ते है झूठे हसने के साथ,
क्योंकि कभी कभी दर्द भी होता हैं एक अनकही बात।

(सुनीता)

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