आँखों में दर्द लेके भी मुस्कुराता रहता है
ए मर्द सच बता तू कितने ज़ख्म सहता है,
कोई अगर हस्के पूछे जो तेरी तकलीफ,
फ़िर भी तू कहा उसे सच कहता है एक
मर्द सच बता तू कितने ज़ख्म सहता है
ज़िम्मेदारियो का जो बोझ लेके तू घर से निकलता है,
अपनों के खातिर जीते बिना कहा वापस आता है,
दर दर भटकता रहता है थोड़ा कमाने के लिए,
परिवार को खिलाने तू खुद ट्रेन में बैठके खाता है,
ए मर्द सच बता तू कितने ज़ख्म सहता है,
अपनों की ख़ुशी के लिए तू कितनी बार हारता है,
उनके सपनों के खातिर अपने कितने कुर्बान करता है?
एक मर्द सच बता तू कितने गम सहता है,
माँ की साड़ी, बीवी का तौफा बच्चे को घुमाता है,
इसके बाद भी तू घर की किस्ते बचाता है,
इतना करके सिर्फ महिलाए महान बताती है,
तेरा ये बलिदान कहाँ बताया जाता है,
फ़िर भी बिना किसी स्वार्थ तू अपना फ़र्ज़ निभाता है,
सच बता तू इतनी हिम्मत कहाँ से लाता है।
- Krunal Soni
- Krunal Soni