मैं की भावना से मुक्त मैं नारी ।
बचपन में पैंट–शर्ट की शौकीन भारी।
शौकीन इसलिए कि
पापा समझे मुझे बेटा ,मैं बेटी नहीं
मैं लड़को– सी रहती
लडको–सी कहती
मैं खुद के लड़की होने के अस्तित्व को नकारती गई
सोची मैं जीत गई, मगर मैं हारती गई
शरीर तो वही
सब कहते मैं बेटा नहीं
मैं रोती और कहती मैं बेटा नही तो बेटी ही सही
लेकिन तुम्हारे नज़र में यह फर्क भला क्यों ?
लड़को की गंदी नजर
उनके इधर उधर छूने का असर
मैने लड़का होना त्याग दिया
अस्तित्व लड़की का ही पूरा अपना लिया
लेकिन आदत कैसे बदलती
अब लडकियो की तरह मैं नहीं सजती
परंतु मुझे मेरे होने पर गर्व है ।
मैं भावुक हूं ,मैं ममता से ओत प्रोत हूं
अब शान से कहती हूं हां मैं औरत हूं।
#Women