ईश्वर मस्तिष्क में नहीं हृदय में निवास करता है। दिमाग केवल सोचता है और सोच विचारों के मार्गदर्शन
के अधीन होती है। यदि हम हृदय अनुभूति को अपने जीवन की डोर थमाए रहें तब प्रेम और भक्ति में रह सकते है।
केवल हमे हृदय अधीन बनने में स्वयं को ढालने होगा। मन के विकार दूर रहेंगे और सकारात्मक विचारों का मार्गदर्शन स्वतः ही प्रसस्त हो जाएगा।
प्रभु श्री हनुमान प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त केवल प्रभु के हृदयिक प्रेम में लीन होने से बने और उनके द्वारा ही असाध्य एवं असाधारण कार्य संपादित हुए।
हृदय अधीन रहने से जीवन मे अतुलनीय शक्ति प्राप्त होती है।
#Hanuman