क्यों नहीं ???
हँसती हुई आँखों से पूछा...
ठेर सारी खुशियोंमें तू शामिल क्यों नहीं है ?
देखती हो सारा जहाँ...
महफिल में मशरूफ़ क्यों नहीं है ???
बेज़ार है तकदीर...
या कोई लकीर सो रही है ?
बुना कोई ख़्वाब है टूटा...
या कोइ ख़्वाहिश रो रही है ???
ग़ुमशुदा हुआ है क़ुछ ?
या बहेतर की तलाश में हो ? Nidhi
मिल गई है चाहत अग़र,
क़दम फिर महफ़ूज़ क्यों नहीं है ???
सूखने दे आँखों को,
जो अपना एहसास खो रही है !
बेशक़ीमती अश्कों से शायद,
बेग़ैरत के निशां धो रही है !!!
वजूद है ख़ुद का अग़र,
कारवाँ चलता क्यों नहीं है ?
रास्ता नामुक़्क़ीन है ग़र,
नया कोई मोड़ दिखता क्यों नहीं है ?
होंसलेकी बाँध ले गठरी,
उठा कदम तुजे चलना क्यों नहीं है ?
ढ़लती हुई शाम से कभी पूछो, Nidhi
क्या सचमें तुजे उगना नहीं है ???