मुक्तक 1
जिन्हें हम प्यार करते हैं वो अक्सर रुठ जाते हैं।
मिले गर प्यार फूलों से तो पत्थर रुठ जाते हैं।
मनाने रूठने से प्यार बढ़ता है मगर मुझसे,
अगर तुम रुठ जाते हो मुक़द्दर रूठ जाते हैं।।
2
जो लहजे गम के सागर में डुबोकर लौट जाते हैं।
तो आँसू आँख की पलकों को छूकर लौट जाते हैं।
वो बोले दिल्लगी को प्यार जो समझे खता उसकी,
मैं सुनकर टूट जाता हूँ वो कहकर लौट जाते हैं।।
3
जमाने भर की आँखों में नए सपने बनाऊँगा।
मैं बेगानों से गम चुनकर उन्हें अपने बनाऊँगा।
बनाने का हुनर बख़्शा खुदा ने गर कभी मुझको,
नहीं हथियार कोई भी मगर कलमें बनाऊँगा।।
4
तू है मोती मैं हूँ धागा
तुझ सँग लिपटा सोया जागा
ख्वाब में मर्जी पूँछी रब ने
मैंने साथ तुम्हारा माँगा।।
5
हमारे दिल में आँखों में समन्दर के ठिकाने हैं।
तुम्हारे मन की गलियों में बबंडर के फसाने हैं।
मैं तुमसे दिल लगाऊँ तुम लगा दो मन अगर अपना,
ठिकाने फूट पड़ने हैं समंदर भाग जाने हैं।।
संजय नारायण