जब तक मुगल दरबार में राजपूत राजा मानसिंह, राजा जसवंत सिंह , राजा रायसिंह जैसे कूटनीतिक योद्धा रहे, तब तक भारत का खजाना भारत से बाहर नहीं जा सका।
लेकिन 1738 ई. में मुगल दरबार में राजपूतों की संख्या न के बराबर रह गई थी। इस समय नादिरशाह ने मात्र 50-60 हजार की सेना सहित करनाल के युद्ध में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की 3 लाख की सेना का सामना किया और मात्र 3 घण्टे में मुगल बादशाह को परास्त करके कैद कर लिया।
इस युद्ध ने मुगल सेना के युद्ध कौशल का पर्दा भी फाश कर दिया था। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने घुटनों पर बैठकर नादिरशाह के सामने सिर झुकाया और नादिरशाह को मयूर तख्त, कोहिनूर हीरे सहित भारत के खजाने का एक बड़ा हिस्सा सौंप दिया।
फिर नादिरशाह ने मुगल किले में प्रवेश किया। इस समय उसने मुगल बादशाह को एक सेवक की भांति अपने साथ रखा। किले में मयूर तख्त पर बैठकर नादिरशाह ने दरबार लगाया, जहां मुगल हरम की औरतों ने नादिरशाह के सामने नजराना देते हुए उसके सामने कीमती उपहार पेश किए।
नादिरशाह ने भारत से इतनी ज्यादा धन संपदा लूटी, जिसका अनुमान लगाना भी सम्भव नहीं।