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New bites

proyroy.153189

मैंने अपनी खामोशी को लकीरों में पिरो दिया है.... आप बताओ, मेरी रूह ने कैसा चित्र उकेरा है?
ये मैंने तब बनाया था जब मैं 12th me था ....शायद 2012 में।
अच्छा लगे तो like, comment और follow जरूर करें।
इसी से मुझे खुशी मिलती है।
मेरी खुशी आपके पास है क्यूँकी आप ही मेरे लिए सब कुछ हो।

vishalsaini922479

proyroy.153189

motivational line😈🖤

gayatreegayatree.482743

good night

kajalgarg5331gmail.com200758

gautam0218

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gautam0218

आकाशाकडे पाहणारा एकटाच माणूस

सायंकाळची वेळ. बागेत पक्ष्यांचा किरकिराट थोडा ओसरलेला. मुलांच्या आरोळ्या मागे सरकलेल्या, आणि सूर्याची किरणं हळूहळू जमिनीवरून पाय मागं घेत होती. झाडांच्या सावल्या लांबट होत होत्या, जणू त्या सुद्धा विसाव्याच्या शोधात होत्या.

त्या बेंचवर तो एकटा बसलेला होता. साधा शर्ट, थोडा काळवंडलेला चेहरा, आणि डोळे — जे काही बोलत नव्हते, पण खूप काही सांगत होते. ते डोळे आकाशाकडे रोखलेले होते. जणू काही त्याला आकाशात काहीतरी शोधायचं होतं — हरवलेलं प्रेम, न सापडलेलं उत्तर, की एखादं अपूर्ण स्वप्न?

कोणी म्हणालं असतं, “काय झालं रे?”, तर तो फक्त मंद स्मिताने मान हलवला असता. कारण काही गोष्टी सांगून होत नाहीत. त्या फक्त जगाव्या लागतात, हृदयात जपाव्या लागतात, आणि अशाच संध्याकाळी आकाशाकडे पाहत विसरून जाव्या लागतात.

झाडावरचा एक पान हवेवर थरथरत त्याच्या शेजारी पडला. त्याने ते उचललं, बघितलं... आणि हळूच खाली ठेवून दिलं. जणू तेही त्याच्यासारखंच – थोडंसं तुटलेलं, थोडंसं शांत, आणि कुणीतरी विसरलेलं.

अशा संध्याकाळीं मनं शांत नाही होत. त्या फक्त थांबतात. थोडा वेळ, थोड्या श्वासांसाठी. आणि मग पुन्हा चालू लागतात – न बोलता, न कुणाला सांगता – आकाशाकडे पाहत.

– एक उदास संध्याकाळ. एक मूक संवाद. एक आकाशाकडे पाहणारं मन.

fazalesaf2973

"कुछ ज़ख्म ख़ामोश रहते हैं,
न आह निकलती है, न आवाज़,
बस आंखों में ठहरी नमी,
सब कह जाती है।"

inkimagination

Good evening

dimpledas211732

जिसको हम ईश्वर कहते है, परमात्मा कहते है उसने शायद से जान बूझ कर ये दुनिया परफैक्ट नही बनाई है। थोडे रोग, थोड़ी परेशानी, थोड़े दुख, थोड़ा न होना, थोड़ी सी मुश्केलियाँ , थोड़े से challenges, थोड़ा न सोचा हुआ  होना। ये सब इसलिए परफेक्ट नही बनाया क्योंकि ईश्वर आपको संदेश देना चाहते है की जो चीज़ आपको नही मिल रही , जिसको पाने की कोशिश आप बरसो से कर रहे हो, जो आपको परफेक्ट ना लग रही हो ,उसको चाहना कैसे है, उसे प्यार करना सीखो। उसके में जो अधूरापन अपने प्यार से पूरा करो।


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vivekpatel9711

"पैगम्बर मुहम्मद — 03", को मातृभारती पर पढ़ें :,

https://www.matrubharti.com

भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

मुहम्मद को जानना जरूरी क्यों है? क्योंकि करोड़ों लोग उसकी तरह बनने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा उसने किया, वैसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि एक व्यक्ति का पागलपन उसके करोड़ों अनुयायियों का जुनून बन गया है। मुहम्मद को समझकर ही हम आर-पार देख सकेंगे और भविष्य को लेकर इन अप्रत्याशित लोगों के बारे में अनुमान लगा सकेंगे। हम खतरनाक दौर में जी रहे हैं। मानवता का पाँचवां भाग एक पागल को पूज रहा है, आत्मघाती बम हमलों की वाहवाही कर रहा है और सोच रहा है कि हत्या और शहादत सर्वाधिक पुण्य का काम है। दुनिया एक खतरनाक जगह हो गई है। जब इन लोगों के पास आणविक हथियार होंगे तो धरती राख का ढेर बन जाएगी। इस्लाम कोई धर्म नहीं, बल्कि एक सम्प्रदाय है। अब हमें जाग जाना चाहिए और मान लेना चाहिए कि यह सम्प्रदाय मानव जाति के लिए खतरा है और मुस्लिमों के साथ सभ्य समाज का सहअस्तित्व असंभव है। जब तक मुसलमान मुहम्मद में विश्वास करेंगे, वो दूसरों और अपने खुद के लिए भी खतरा बने रहेंगे।

मुसलमानों को या तो इस्लाम छोड़ देना चाहिए और घृणा की संस्कृति त्याग कर मानव जाति के साथ सभ्य साथी की तरह रहना शुरू कर देना चाहिए या फिर गैर-मुस्लिमों को इन लोगों से खुद को अलग कर इस्लाम पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, अपने देश में मुसलमानों का प्रवेश रोक देना चाहिए और उन्हें उनके देश वापस भेज देना चाहिए जो देश के लोकतंत्र के खिलाफ साजिश रचते हैं और दूसरों के साथ समरस होने से इंकार करते हैं।

इस्लाम लोकतंत्र का विरोधी है। मुसलमान ऐसी लड़ाका जाति है, जो लोकतंत्र का प्रयोग लोकतंत्र को ही समाप्त करने और खुद को विश्वव्यापी तानाशाही के रूप में स्थापित करने के लिए करती है। बर्बरता और सभ्यता के बीच संघर्ष एवं विश्व आपदा को रोकने के लिए इस्लाम की भ्रांतियों को उजागर किया जाना और इसे बेनकाब किया जाना एकमात्र उपाय है। मानवता के शांतिपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है कि मुसलमानों से इस्लाम नामक गंदगी को दूर किया जाए।

मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों के लिए मुहम्मद के चरित्र को समझना जरूरी है। यह पुस्तक इस काम को आसान बनाती है।
—लेखक अली सीना

[बुक नेम: अंडरस्टैंडिंग मुहम्मद]
[लेखक: डॉ. अली सीना]
[सर्च गूगल एंड डाउनलोड pdf बुक]

abiaansari444348

"पैगम्बर मुहम्मद — 02", को मातृभारती पर पढ़ें :,

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भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

मुहम्मद को जानना जरूरी क्यों है? क्योंकि करोड़ों लोग उसकी तरह बनने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा उसने किया, वैसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि एक व्यक्ति का पागलपन उसके करोड़ों अनुयायियों का जुनून बन गया है। मुहम्मद को समझकर ही हम आर-पार देख सकेंगे और भविष्य को लेकर इन अप्रत्याशित लोगों के बारे में अनुमान लगा सकेंगे। हम खतरनाक दौर में जी रहे हैं। मानवता का पाँचवां भाग एक पागल को पूज रहा है, आत्मघाती बम हमलों की वाहवाही कर रहा है और सोच रहा है कि हत्या और शहादत सर्वाधिक पुण्य का काम है। दुनिया एक खतरनाक जगह हो गई है। जब इन लोगों के पास आणविक हथियार होंगे तो धरती राख का ढेर बन जाएगी। इस्लाम कोई धर्म नहीं, बल्कि एक सम्प्रदाय है। अब हमें जाग जाना चाहिए और मान लेना चाहिए कि यह सम्प्रदाय मानव जाति के लिए खतरा है और मुस्लिमों के साथ सभ्य समाज का सहअस्तित्व असंभव है। जब तक मुसलमान मुहम्मद में विश्वास करेंगे, वो दूसरों और अपने खुद के लिए भी खतरा बने रहेंगे।

मुसलमानों को या तो इस्लाम छोड़ देना चाहिए और घृणा की संस्कृति त्याग कर मानव जाति के साथ सभ्य साथी की तरह रहना शुरू कर देना चाहिए या फिर गैर-मुस्लिमों को इन लोगों से खुद को अलग कर इस्लाम पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, अपने देश में मुसलमानों का प्रवेश रोक देना चाहिए और उन्हें उनके देश वापस भेज देना चाहिए जो देश के लोकतंत्र के खिलाफ साजिश रचते हैं और दूसरों के साथ समरस होने से इंकार करते हैं।

इस्लाम लोकतंत्र का विरोधी है। मुसलमान ऐसी लड़ाका जाति है, जो लोकतंत्र का प्रयोग लोकतंत्र को ही समाप्त करने और खुद को विश्वव्यापी तानाशाही के रूप में स्थापित करने के लिए करती है। बर्बरता और सभ्यता के बीच संघर्ष एवं विश्व आपदा को रोकने के लिए इस्लाम की भ्रांतियों को उजागर किया जाना और इसे बेनकाब किया जाना एकमात्र उपाय है। मानवता के शांतिपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है कि मुसलमानों से इस्लाम नामक गंदगी को दूर किया जाए।

मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों के लिए मुहम्मद के चरित्र को समझना जरूरी है। यह पुस्तक इस काम को आसान बनाती है।
—लेखक अली सीना

[बुक नेम: अंडरस्टैंडिंग मुहम्मद]
[लेखक: डॉ. अली सीना]
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abiaansari444348

બજાવે સાજ કોઈ રાત આખી, હૃદયનું સંગીત,
સૂરા છે શાંત જેમાં, વાત સાચી, હૃદયનું સંગીત.

નથી એને કોઈ લય કે નથી કોઈ બંદિશ,
વહે છે આપમેળે, પ્રીત પાકી, હૃદયનું સંગીત.

કહો એને ધડકનોનો અવાજ કે પ્રેમનો રવ વેદના
હંમેશા ગૂંજે છે, આંખે ઝાકળ આખી, હૃદયનું સંગીત.

કદીક એમાં વિરહનો સૂર વ્યાપે, કદી ખુશીનો,
છતાંયે રોજેરોજ, રહી છે લાગણીઓ ઝાઝી,

જ્યારે પણ સાંભળો એને, લાગે છે જાણે કે,
પ્રેમની સરગમ છે, રગોમાં રેલાતી, હૃદયનું સંગીત.

palewaleawantikagmail.com200557

zindagi..

krupalipatel.810943

कभी नदियाँ भी बोलती हैं…
क्या आपने कभी किसी नदी से बात की है?
📖 “बर्फ के पीछे कोई था?” का ये अध्याय ले जाएगा आपको एक रहस्यमयी यात्रा पर—जहाँ शब्दों की तरह बहती है एक नदी।

🌊 जानिए क्या राज़ छुपे हैं इस बहाव में…
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कथा शीर्षक: पछुतो

कथा:

माया थियो… साँच्चिकै माया थियो उसप्रति। तर त्यही मायाभित्र कतै अहंकार मिसिएको रहेछ, जुन म आफैंले चिनेकी थिइनँ।

सानो झगडा भयो त्यो दिन। श्रीमानले कडा स्वरमा केही बोले, म पनि चुप लागिनँ। रिस उठ्यो, म माइती फर्किएँ।

"दुई दिनपछि उहाँ मलाई लिन आउनुभयो। म रिसाएकी थिएँ, तर उहाँको आँखामा पश्चात्ताप थियो। उहाँले भने — 'घर जाऊ, मिलेर बाँचौँ।' तर म… म बाँचुञ्जेल नसुनुँला जस्तो गरेर फर्काइदिएँ।"

त्यसपछि के भयो? केही झूटा आफन्त, केही माइतीका मनका कुराहरूले मलाई उसविरुद्ध उचाल्न थाले। म त्यसै गरें… झूटो दाइजोको मुद्दा हालिदिएँ।

छ वर्ष भयो, म अझै माइतीमै छु। मुद्दा झूटो थियो, अदालतले फैसला उहाँको पक्षमा गर्‍यो।
आज उहाँको दोस्रो बिहे पनि भइसक्यो — धूमधामले।

आज एक्लै छतमा बसेर आकाश हेर्दै सोच्छु,
"उहाँ त्यस दिन लिन आउँदा म उहाँको पछि लागेकी भए… आज मेरो पनि एउटा सानो परिवार हुने थियो। सासु–ससुरा, श्रीमान अनि काखमा खेलिरहने सानी छोरी वा छोरा।"

साथ कसैले दिनेन, सल्लाह सबै दिन्छन्। तर जीवन… जीवन त अन्ततः आफ्नै हुन्छ। निर्णयहरू पनि आफ्नै हुनुपर्छ।

आज बुझें — रिस उठ्दा दुई दिन चुप लाग्नु बेस, तर सम्बन्ध तोड्नु मूर्खता हो।

आज म एक्लिएकी छु… तर त्यो रिस, त्यो घमण्ड… आज पनि मेरो वरिपरि छायाजस्तै घुमिरहेछ।

कथा शीर्षक: पछुतो

कथा:

माया थियो… साँच्चिकै माया थियो उसप्रति। तर त्यही मायाभित्र कतै अहंकार मिसिएको रहेछ, जुन म आफैंले चिनेकी थिइनँ।

सानो झगडा भयो त्यो दिन। श्रीमानले कडा स्वरमा केही बोले, म पनि चुप लागिनँ। रिस उठ्यो, म माइती फर्किएँ।

"दुई दिनपछि उहाँ मलाई लिन आउनुभयो। म रिसाएकी थिएँ, तर उहाँको आँखामा पश्चात्ताप थियो। उहाँले भने — 'घर जाऊ, मिलेर बाँचौँ।' तर म… म बाँचुञ्जेल नसुनुँला जस्तो गरेर फर्काइदिएँ।"

त्यसपछि के भयो? केही झूटा आफन्त, केही माइतीका मनका कुराहरूले मलाई उसविरुद्ध उचाल्न थाले। म त्यसै गरें… झूटो दाइजोको मुद्दा हालिदिएँ।

छ वर्ष भयो, म अझै माइतीमै छु। मुद्दा झूटो थियो, अदालतले फैसला उहाँको पक्षमा गर्‍यो।
आज उहाँको दोस्रो बिहे पनि भइसक्यो — धूमधामले।

आज एक्लै छतमा बसेर आकाश हेर्दै सोच्छु,
"उहाँ त्यस दिन लिन आउँदा म उहाँको पछि लागेकी भए… आज मेरो पनि एउटा सानो परिवार हुने थियो। सासु–ससुरा, श्रीमान अनि काखमा खेलिरहने सानी छोरी वा छोरा।"

साथ कसैले दिनेन, सल्लाह सबै दिन्छन्। तर जीवन… जीवन त अन्ततः आफ्नै हुन्छ। निर्णयहरू पनि आफ्नै हुनुपर्छ।

आज बुझें — रिस उठ्दा दुई दिन चुप लाग्नु बेस, तर सम्बन्ध तोड्नु मूर्खता हो।

आज म एक्लिएकी छु… तर त्यो रिस, त्यो घमण्ड… आज पनि मेरो वरिपरि छायाजस्तै घुमिरहेछ।

rajukumarchaudhary502010