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“क्या कभी पहाड़ की चुप्पी सुनी है?”
जहाँ कभी बच्चों की किलकारियाँ, माँ की थाली की खनक और खेतों में पिता की हलचल गूंजती थी — आज वहाँ सिर्फ़ नाटा है।
“जब पहाड़ रो पड़े” कोई साधारण किताब नहीं, एक जीती-जागती दस्तावेज़ है उन गाँवों की जो अब मानचित्र पर तो हैं, पर ज़िंदगी से कट चुके हैं। यह उन माँओं की पुकार है जो अब भी दरवाज़े खुले रखती हैं, उन पिता की चुप्पी है जो हर सुबह खेतों में उम्मीद बोते हैं, उन स्कूलों की दीवारें हैं जो अब भी बच्चों की आवाज़ सुनने को तरसती हैं।
ये किताब आँकड़ों की नहीं, आंसुओं की कहानी है। एक ऐसा सच जिसे हमने देखा है, महसूस किया है — लेकिन शायद स्वीकार नहीं किया।
अगर आपने भी कभी अपना गाँव छोड़ा है, या अब भी मन में उस मिट्टी की ख़ुशबू बसती है — तो ये किताब आपकी अपनी कहानी है।
Amazon की Best Seller सूची में शामिल “जब पहाड़ रो पड़े” आज एक भावनात्मक आंदोलन बन चुकी है।
इस किताब को पढ़िए, महसूस कीजिए… और सोचिए — क्या हम सिर्फ़ शहरों के नागरिक हैं, या उन गाँवों के भी ज़िम्मेदार हैं जो हमें जड़ें देते हैं?
📖 लेखक: धीरेंद्र सिंह बिष्ट
🎖 Amazon Bestseller | Anthropology Rank #72
📚 उपलब्ध है Now on Amazon
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💍 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा
प्रस्तावना:
प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?
---
कहानी की शुरुआत
अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।
पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”
माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —
> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"
---
दूसरी ओर
अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।
उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।
जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —
> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"
अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।
---
शादी: एक नाटक की शुरुआत
शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।
अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।
अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।
धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।
---
भावनाओं का बदलता मौसम
6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?
एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —
> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”
अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।
---
टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल
जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।
एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —
> “क्या हुआ?”
अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —
> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”
---
कहानी का मोड़
अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?
फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।
अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।
> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”
अनन्या की आँखें भर आईं।
> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”
> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”
---
एपिलॉग: एक नई शुरुआत
अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।
अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।
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🌟 सीख:
रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।📝 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में
"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."
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प्रस्तावना
अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।
---
कहानी शुरू होती है…
अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।
अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।
एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —
> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”
अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:
एक साल का कांट्रैक्ट
कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं
मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी
माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक
अनन्या मान गई।
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शादी… और उसका नाटक
शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।
लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।
अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।
वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।
---
कांट्रैक्ट के परे की दुनिया
एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —
> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”
अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।
एक रात अर्जुन ने पूछा —
> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”
अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —
> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”
---
टूटता समझौता, जुड़ते दिल
एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।
अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।
> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”
पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।
> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”
अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।
> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”
> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”
अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।
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एपिलॉग
अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।
"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"
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🌟 सीख:
रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।भाग ३३: “विवेक की जीत – प्यार की नई राह”
विवेक और उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वे एक-दूसरे के लिए समय देंगे।
छोटे-छोटे पल जोड़ेंगे, जो प्यार के बड़े पुल बनेंगे।
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परिवार की सोच में बदलाव
विवेक के परिजन भी धीरे-धीरे मानने लगे कि रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं, भावना का होता है।
एक दिन मम्मी ने कहा —
> “मैंने देखा है तुम्हारे चेहरे की खुशी।
शायद प्यार वक्त मांगता है, लेकिन आता जरूर है।”
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आरुषि और अर्जुन का आशीर्वाद
आरुषि ने कहा —
> “प्यार की असली ताकत तब आती है जब हम धैर्य और समझदारी से काम लें।”
अर्जुन ने जोड़ा —
> “और जब दो लोग सच में चाहते हैं, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।”
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दोनों के बीच बढ़ता रिश्ता
विवेक और उसकी पत्नी ने साथ में छुट्टियां बिताईं, छोटे-छोटे गिफ्ट दिए, और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझी।
हर दिन उनका रिश्ता थोड़ा और गहरा होता गया।
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🌟 जारी रहेगा…
💡 सीख:
> प्यार के लिए धैर्य और समझना सबसे बड़ा मंत्र है।
अब बताओ…
क्या आप देखना चाहते हैं कि विवेक की कहानी कैसे आगे बढ़ेगी?
क्या उनके बीच के रिश्ते में और मजबूती आएगी?
और क्या अर्जुन-आरुषि इस सफर में उनकी मदद करेंगे
💍 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा
प्रस्तावना:
प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?
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कहानी की शुरुआत
अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।
पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”
माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —
> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"
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दूसरी ओर
अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।
उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।
जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —
> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"
अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।
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शादी: एक नाटक की शुरुआत
शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।
अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।
अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।
धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।
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भावनाओं का बदलता मौसम
6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?
एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —
> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”
अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।
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टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल
जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।
एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —
> “क्या हुआ?”
अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —
> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”
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कहानी का मोड़
अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?
फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।
अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।
> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”
अनन्या की आँखें भर आईं।
> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”
> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”
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एपिलॉग: एक नई शुरुआत
अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।
अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।
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🌟 सीख:
रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।📝 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में
"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."
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प्रस्तावना
अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।
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कहानी शुरू होती है…
अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।
अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।
एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —
> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”
अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:
एक साल का कांट्रैक्ट
कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं
मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी
माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक
अनन्या मान गई।
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शादी… और उसका नाटक
शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।
लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।
अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।
वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।
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कांट्रैक्ट के परे की दुनिया
एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —
> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”
अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।
एक रात अर्जुन ने पूछा —
> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”
अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —
> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”
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टूटता समझौता, जुड़ते दिल
एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।
अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।
> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”
पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।
> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”
अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।
> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”
> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”
अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।
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एपिलॉग
अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।
"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"
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🌟 सीख:
रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।भाग ३३: “विवेक की जीत – प्यार की नई राह”
विवेक और उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वे एक-दूसरे के लिए समय देंगे।
छोटे-छोटे पल जोड़ेंगे, जो प्यार के बड़े पुल बनेंगे।
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परिवार की सोच में बदलाव
विवेक के परिजन भी धीरे-धीरे मानने लगे कि रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं, भावना का होता है।
एक दिन मम्मी ने कहा —
> “मैंने देखा है तुम्हारे चेहरे की खुशी।
शायद प्यार वक्त मांगता है, लेकिन आता जरूर है।”
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आरुषि और अर्जुन का आशीर्वाद
आरुषि ने कहा —
> “प्यार की असली ताकत तब आती है जब हम धैर्य और समझदारी से काम लें।”
अर्जुन ने जोड़ा —
> “और जब दो लोग सच में चाहते हैं, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।”
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दोनों के बीच बढ़ता रिश्ता
विवेक और उसकी पत्नी ने साथ में छुट्टियां बिताईं, छोटे-छोटे गिफ्ट दिए, और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझी।
हर दिन उनका रिश्ता थोड़ा और गहरा होता गया।
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🌟 जारी रहेगा…
💡 सीख:
> प्यार के लिए धैर्य और समझना सबसे बड़ा मंत्र है।
अब बताओ…
क्या आप देखना चाहते हैं कि विवेक की कहानी कैसे आगे बढ़ेगी?
क्या उनके बीच के रिश्ते में और मजबूती आएगी?
और क्या अर्जुन-आरुषि इस सफर में उनकी मदद करेंगे
💍 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा
प्रस्तावना:
प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?
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कहानी की शुरुआत
अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।
पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”
माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —
> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"
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दूसरी ओर
अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।
उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।
जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —
> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"
अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।
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शादी: एक नाटक की शुरुआत
शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।
अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।
अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।
धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।
---
भावनाओं का बदलता मौसम
6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?
एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —
> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”
अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।
---
टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल
जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।
एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —
> “क्या हुआ?”
अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —
> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”
---
कहानी का मोड़
अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?
फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।
अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।
> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”
अनन्या की आँखें भर आईं।
> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”
> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”
---
एपिलॉग: एक नई शुरुआत
अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।
अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।
---
🌟 सीख:
रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।📝 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में
"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."
---
प्रस्तावना
अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।
---
कहानी शुरू होती है…
अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।
अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।
एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —
> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”
अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:
एक साल का कांट्रैक्ट
कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं
मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी
माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक
अनन्या मान गई।
---
शादी… और उसका नाटक
शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।
लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।
अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।
वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।
---
कांट्रैक्ट के परे की दुनिया
एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —
> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”
अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।
एक रात अर्जुन ने पूछा —
> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”
अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —
> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”
---
टूटता समझौता, जुड़ते दिल
एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।
अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।
> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”
पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।
> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”
अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।
> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”
> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”
अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।
---
एपिलॉग
अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।
"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"
---
🌟 सीख:
रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।भाग ३३: “विवेक की जीत – प्यार की नई राह”
विवेक और उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वे एक-दूसरे के लिए समय देंगे।
छोटे-छोटे पल जोड़ेंगे, जो प्यार के बड़े पुल बनेंगे।
---
परिवार की सोच में बदलाव
विवेक के परिजन भी धीरे-धीरे मानने लगे कि रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं, भावना का होता है।
एक दिन मम्मी ने कहा —
> “मैंने देखा है तुम्हारे चेहरे की खुशी।
शायद प्यार वक्त मांगता है, लेकिन आता जरूर है।”
---
आरुषि और अर्जुन का आशीर्वाद
आरुषि ने कहा —
> “प्यार की असली ताकत तब आती है जब हम धैर्य और समझदारी से काम लें।”
अर्जुन ने जोड़ा —
> “और जब दो लोग सच में चाहते हैं, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।”
---
दोनों के बीच बढ़ता रिश्ता
विवेक और उसकी पत्नी ने साथ में छुट्टियां बिताईं, छोटे-छोटे गिफ्ट दिए, और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझी।
हर दिन उनका रिश्ता थोड़ा और गहरा होता गया।
---
🌟 जारी रहेगा…
💡 सीख:
> प्यार के लिए धैर्य और समझना सबसे बड़ा मंत्र है।
अब बताओ…
क्या आप देखना चाहते हैं कि विवेक की कहानी कैसे आगे बढ़ेगी?
क्या उनके बीच के रिश्ते में और मजबूती आएगी?
और क्या अर्जुन-आरुषि इस सफर में उनकी मदद करेंगे
💍 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा
प्रस्तावना:
प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?
---
कहानी की शुरुआत
अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।
पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”
माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —
> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"
---
दूसरी ओर
अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।
उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।
जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —
> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"
अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।
---
शादी: एक नाटक की शुरुआत
शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।
अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।
अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।
धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।
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भावनाओं का बदलता मौसम
6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?
एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —
> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”
अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।
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टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल
जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।
एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —
> “क्या हुआ?”
अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —
> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”
---
कहानी का मोड़
अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?
फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।
अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।
> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”
अनन्या की आँखें भर आईं।
> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”
> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”
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एपिलॉग: एक नई शुरुआत
अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।
अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।
---
🌟 सीख:
रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।भाग ३३: “विवेक की जीत – प्यार की नई राह”
विवेक और उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वे एक-दूसरे के लिए समय देंगे।
छोटे-छोटे पल जोड़ेंगे, जो प्यार के बड़े पुल बनेंगे।
---
परिवार की सोच में बदलाव
विवेक के परिजन भी धीरे-धीरे मानने लगे कि रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं, भावना का होता है।
एक दिन मम्मी ने कहा —
> “मैंने देखा है तुम्हारे चेहरे की खुशी।
शायद प्यार वक्त मांगता है, लेकिन आता जरूर है।”
---
आरुषि और अर्जुन का आशीर्वाद
आरुषि ने कहा —
> “प्यार की असली ताकत तब आती है जब हम धैर्य और समझदारी से काम लें।”
अर्जुन ने जोड़ा —
> “और जब दो लोग सच में चाहते हैं, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।”
---
दोनों के बीच बढ़ता रिश्ता
विवेक और उसकी पत्नी ने साथ में छुट्टियां बिताईं, छोटे-छोटे गिफ्ट दिए, और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझी।
हर दिन उनका रिश्ता थोड़ा और गहरा होता गया।
---
🌟 जारी रहेगा…
💡 सीख:
> प्यार के लिए धैर्य और समझना सबसे बड़ा मंत्र है।
अब बताओ…
क्या आप देखना चाहते हैं कि विवेक की कहानी कैसे आगे बढ़ेगी?
क्या उनके बीच के रिश्ते में और मजबूती आएगी?
और क्या अर्जुन-आरुषि इस सफर में उनकी मदद करेंगे
📝 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में
"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."
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प्रस्तावना
अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।
---
कहानी शुरू होती है…
अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।
अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।
एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —
> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”
अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:
एक साल का कांट्रैक्ट
कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं
मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी
माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक
अनन्या मान गई।
---
शादी… और उसका नाटक
शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।
लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।
अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।
वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।
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कांट्रैक्ट के परे की दुनिया
एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —
> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”
अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।
एक रात अर्जुन ने पूछा —
> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”
अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —
> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”
---
टूटता समझौता, जुड़ते दिल
एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।
अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।
> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”
पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।
> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”
अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।
> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”
> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”
अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।
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एपिलॉग
अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।
"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"
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🌟 सीख:
रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।
💍 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में – एक रोमांटिक-ड्रामा
प्रस्तावना:
प्यार वो एहसास है जो अक्सर बिना बुलाए चला आता है।
पर जब वही प्यार एक काग़ज़ी समझौते से शुरू हो… तो क्या वो सच्चा प्यार बन सकता है?
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कहानी की शुरुआत
अर्जुन मेहरा, 30 साल का एक सफल बिजनेसमैन, दिल्ली की बड़ी कंपनी का सीईओ। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पैसा, पावर, प्रतिष्ठा… बस एक चीज़ की कमी थी – प्यार।
प्यार शब्द से उसे चिढ़ थी। उसे लगता था प्यार सिर्फ एक इमोशनल जाल है, जिसमें फँसकर लोग अपने करियर और पहचान को बर्बाद कर देते हैं।
पर उसकी माँ, सुनीता मेहरा — जो कैंसर से जूझ रही थीं — बस एक ही ख्वाहिश लेकर जी रही थीं:
“मेरे बेटे की शादी हो जाए… बस फिर मैं चैन से मर सकूंगी।”
माँ के आँसू देखकर पत्थर दिल अर्जुन भी पिघल गया। लेकिन वो दिल से शादी नहीं करना चाहता था। तभी उसने फैसला लिया —
> "अगर एक कांट्रैक्ट मैरिज हो जाए… एक साल के लिए… ताकि माँ को लग जाए कि मैं खुश हूँ…"
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दूसरी ओर
अनन्या सिंह — 24 साल की एक होनहार लड़की, जिसने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। पर किस्मत ने धोखा दिया। उसके पिता का बिजनेस डूब गया। घर बिक गया। लोन और कर्ज़दारों की धमकी उसके दिन-रात खराब कर रहे थे।
उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी। और तभी उसकी मुलाकात हुई अर्जुन से — एक जान-पहचान वाले वकील के ज़रिए।
जब अर्जुन ने कांट्रैक्ट का प्रस्ताव दिया —
> "मुझसे शादी करो, एक साल के लिए। बदले में हर महीने 2 लाख मिलेंगे। माँ को लगेगा कि मेरी शादी हो गई है। एक साल बाद हम डाइवोर्स ले लेंगे।"
अनन्या पहले तो हैरान हुई, पर हालात ने उसे हाँ करने पर मजबूर कर दिया।
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शादी: एक नाटक की शुरुआत
शादी सादगी से हुई। सिर्फ माँ के सामने एक ‘खुशहाल कपल’ का नाटक करना था।
अर्जुन और अनन्या एक ही बंगले में रहने लगे, पर अलग-अलग कमरों में।
माँ की आँखों में खुशी लौट आई। लेकिन असली संघर्ष अब शुरू हुआ।
अनन्या की हँसी, अर्जुन को परेशान करने लगी… और फिर लुभाने भी।
अर्जुन की चुप्पी, अनन्या को खलने लगी… फिर उसे समझने का मन करने लगा।
धीरे-धीरे, अनन्या अर्जुन के दिल की दीवारों में सेंध लगाने लगी।
वो जान गई थी — अर्जुन जितना सख्त दिखता है, अंदर से उतना ही टूटा हुआ है।
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भावनाओं का बदलता मौसम
6 महीने बीते।
माँ अब पहले से बेहतर थीं।
अर्जुन ऑफिस के काम में कम और अनन्या की आदतों में ज़्यादा खो गया था।
वो जानता था कि ये सब अस्थाई है… पर दिल को कौन समझाए?
एक रात जब बिजली चली गई, तो दोनों बालकनी में बैठे चाँद की रोशनी में बातें करने लगे।
अनन्या ने कहा —
> “पता है अर्जुन, बचपन में मैं सोचा करती थी कि मेरी शादी किसी राजकुमार से होगी… मगर अब लगता है वो राजकुमार, सूट में बैठा, कानूनी कागज़ पर साइन करवा रहा है।”
अर्जुन मुस्कराया, पर दिल रो पड़ा।
---
टूटता अनुबंध, जुड़ते दिल
जब 11वाँ महीना आया, अनन्या की आँखों में डर दिखने लगा।
वो नहीं चाहती थी कि ये रिश्ता खत्म हो।
पर शर्तें तो पहले से तय थीं।
एक दिन अनन्या ने देखा — अर्जुन चुपचाप अपने कमरे में रो रहा था।
वो पास आई और बोली —
> “क्या हुआ?”
अर्जुन ने पहली बार खुलकर कहा —
> “मैंने इस कांट्रैक्ट से खुद को बचाना चाहा था… पर तुमने मेरी दीवारें गिरा दीं।
अब अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर वही बन जाऊंगा जो पहले था — एक खाली खोल।”
---
कहानी का मोड़
अब एक नया डर दोनों के दिल में था —
क्या दूसरा भी वही महसूस करता है? या यह एकतरफा है?
फिर आया साल का आखिरी दिन।
डायवोर्स के पेपर तैयार थे। वकील बुलाया गया।
अनन्या ने काँपते हाथों से पेपर उठाए… साइन करने ही वाली थी, कि अर्जुन ने पेपर खींच लिए।
> “नहीं चाहिए ये साइन।
अब मैं तुम्हें कांट्रैक्ट वाइफ नहीं, मेरी ज़िंदगी की वाइफ बनाना चाहता हूँ।”
अनन्या की आँखें भर आईं।
> “तो फिर बोलो अर्जुन…
क्या अब ये रिश्ता बिना पैसे के भी चलेगा?”
> “अब ये रिश्ता सिर्फ दिल से चलेगा…
कागज़ों से नहीं।”
---
एपिलॉग: एक नई शुरुआत
अर्जुन और अनन्या ने दोबारा शादी की —
इस बार बिना कांट्रैक्ट, बिना शर्त।
अब उनका रिश्ता एक मिसाल बन चुका था।
दो लोग जो एक सौदे के तहत मिले,
प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल बन गए।
---
🌟 सीख:
रिश्ते अगर दिल से निभाए जाएँ, तो कागज़ों की कोई औकात नहीं होती।
भाग ३३: “विवेक की जीत – प्यार की नई राह”
विवेक और उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वे एक-दूसरे के लिए समय देंगे।
छोटे-छोटे पल जोड़ेंगे, जो प्यार के बड़े पुल बनेंगे।
---
परिवार की सोच में बदलाव
विवेक के परिजन भी धीरे-धीरे मानने लगे कि रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं, भावना का होता है।
एक दिन मम्मी ने कहा —
> “मैंने देखा है तुम्हारे चेहरे की खुशी।
शायद प्यार वक्त मांगता है, लेकिन आता जरूर है।”
---
आरुषि और अर्जुन का आशीर्वाद
आरुषि ने कहा —
> “प्यार की असली ताकत तब आती है जब हम धैर्य और समझदारी से काम लें।”
अर्जुन ने जोड़ा —
> “और जब दो लोग सच में चाहते हैं, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।”
---
दोनों के बीच बढ़ता रिश्ता
विवेक और उसकी पत्नी ने साथ में छुट्टियां बिताईं, छोटे-छोटे गिफ्ट दिए, और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझी।
हर दिन उनका रिश्ता थोड़ा और गहरा होता गया।
---
🌟 जारी रहेगा…
💡 सीख:
> प्यार के लिए धैर्य और समझना सबसे बड़ा मंत्र है।
अब बताओ…
क्या आप देखना चाहते हैं कि विवेक की कहानी कैसे आगे बढ़ेगी?
क्या उनके बीच के रिश्ते में और मजबूती आएगी?
और क्या अर्जुन-आरुषि इस सफर में उनकी मदद करेंगे?
ज़िंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है,
जहाँ किसी अजनबी से मिलने पर वो अपनापन महसूस होता है,
जो कई सालों में अपनों से भी नहीं हुआ।
कभी बस में, कभी ट्रेन में,
कभी किसी सफर या सम्मेलन में —
एक चेहरा, एक मुस्कान,
और फिर शुरू हो जाती है एक अनजानी बातचीत।
हम बात करते हैं —
बिना सोचें, बिना किसी डर के।
अपने ग़म, अधूरे ख्वाब, टूटे रिश्ते,
वो भी कह देते हैं जो शायद कभी
अपने सबसे करीबियों से भी नहीं कह पाए।
उस पल में लगता है —
जैसे किसी ने हमारे मन का बोझ हल्का कर दिया हो।
कोई है जो सुन रहा है,
जो हमें जज नहीं करेगा,
सिर्फ़ समझेगा।
लेकिन जब हम उस बातचीत से लौटते हैं —
अपने कमरे में,
अपने भीतर,
तो एक अजीब सा पछतावा उभरने लगता है।
“मैंने इतना सब कुछ क्यों कह दिया?”
“क्या उसने मुझे मज़ाक में लिया होगा?”
“क्या मैं बहुत जल्दी खुल गया?”
हम खुद से सवाल करने लगते हैं।
मन कहता है — “क्या मैंने अपनी भावनाओं को सस्ते में बेच दिया?”
यही वो बिंदु होता है, जहाँ हम सीखते हैं —
कि हर मुस्कराता चेहरा भरोसे के काबिल नहीं होता।
हर मौन टूटना ज़रूरी नहीं होता।
हर राहगीर दिल का हमसफ़र नहीं होता।
ज़िंदगी में कभी-कभी संवाद से ज़्यादा मौन जरूरी होता है।
कुछ बातें मन में रह जाएं तो बेहतर है,
क्योंकि हर जगह अपनापन नहीं होता,
और हर दिल अपना नहीं होता।
– धीरेंद्र सिंह बिष्ट
लेखक: मन की हार, ज़िंदगी की जीत
भाग ३३: “विवेक की जीत – प्यार की नई राह”
विवेक और उसकी पत्नी ने फैसला किया कि वे एक-दूसरे के लिए समय देंगे।
छोटे-छोटे पल जोड़ेंगे, जो प्यार के बड़े पुल बनेंगे।
---
परिवार की सोच में बदलाव
विवेक के परिजन भी धीरे-धीरे मानने लगे कि रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं, भावना का होता है।
एक दिन मम्मी ने कहा —
> “मैंने देखा है तुम्हारे चेहरे की खुशी।
शायद प्यार वक्त मांगता है, लेकिन आता जरूर है।”
---
आरुषि और अर्जुन का आशीर्वाद
आरुषि ने कहा —
> “प्यार की असली ताकत तब आती है जब हम धैर्य और समझदारी से काम लें।”
अर्जुन ने जोड़ा —
> “और जब दो लोग सच में चाहते हैं, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।”
---
दोनों के बीच बढ़ता रिश्ता
विवेक और उसकी पत्नी ने साथ में छुट्टियां बिताईं, छोटे-छोटे गिफ्ट दिए, और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद समझी।
हर दिन उनका रिश्ता थोड़ा और गहरा होता गया।
---
🌟 जारी रहेगा…
💡 सीख:
> प्यार के लिए धैर्य और समझना सबसे बड़ा मंत्र है।
अब बताओ…
क्या आप देखना चाहते हैं कि विवेक की कहानी कैसे आगे बढ़ेगी?
क्या उनके बीच के रिश्ते में और मजबूती आएगी?
और क्या अर्जुन-आरुषि इस सफर में उनकी मदद करेंगे?
The image presents a spiritual/motivational message, framed with natural elements like green leaves, purple tulips, and a cup of what appears to be coffee or tea. The prominent text "OMSHANTHI" again signifies a peaceful or spiritual greeting, often associated with the Brahma Kumaris movement.
Below "OMSHANTHI" is a quote attributed to "Swami Mithabhaashaananda":
"DOUBTING EVERYBODY IS JUST LIKE GROWING THORNED PLANTS IN YOUR MIND GARDEN ENTRANCE. HURTS THOSE PEOPLE WHO COME AND GO. UPROOT THEM IMMEDIATELY AND BURN INTO ASHES"
Let's break down this quote:
* "DOUBTING EVERYBODY IS JUST LIKE GROWING THORNED PLANTS IN YOUR MIND GARDEN ENTRANCE.": This is a powerful metaphor.
* "Mind Garden Entrance": This refers to the entryway to one's inner peace, thoughts, emotions, and overall well-being. It's where new ideas, relationships, and experiences might enter.
* "Thorned Plants": These symbolize the negative consequences of pervasive doubt. Just as physical thorns can cause pain, doubt creates emotional and psychological barriers.
* "Growing...in your mind garden entrance": This implies that the habit of doubting isn't external but is cultivated internally. It's something one allows to take root and flourish within their own mental space.
* "HURTS THOSE PEOPLE WHO COME AND GO.": This highlights the interpersonal damage caused by a doubtful mindset. If one habitually doubts others, it creates an atmosphere of distrust, suspicion, and negativity. This not only hurts potential or existing relationships but also discourages positive interactions, effectively "hurting" those who might otherwise bring good into one's life. It suggests that a perpetually doubting person pushes others away, preventing genuine connection.
* "UPROOT THEM IMMEDIATELY AND BURN INTO ASHES": This is a strong call to action, advocating for decisive and complete eradication of the habit of universal doubt.
* "Uproot them immediately": This emphasizes the urgency and necessity of addressing doubt at its source, pulling it out from the roots before it spreads further and causes more harm.
* "Burn into ashes": This signifies a complete and irreversible destruction of the negative habit. Burning to ashes leaves no trace, ensuring that the "thorned plants" of doubt cannot regrow. It's a metaphor for totally letting go of and transforming this detrimental way of thinking.
Overall Message:
The quote from Swami Mithabhaashaananda delivers a profound message about the destructive nature of universal doubt and the importance of cultivating trust and openness. It portrays doubt not as a protective mechanism, but as a self-inflicted wound that poisons one's inner world and pushes away positive external influences. The advice is to confront this habit forcefully and decisively, eradicating it completely to make way for a more peaceful, accepting, and ultimately more fulfilling mental state. The presence of "OMSHANTHI" at the top reinforces this idea of finding peace by eliminating inner negativity. The surrounding natural elements and the cup suggest a calm, reflective environment conducive to such introspection and transformation.
राजा भोज का इतिहास
https://www.matrubharti.com/book/19976894/raja-bhoja
विवरण: राजा भोज मालवा के परमार राजवंश के एक महान शासक थे, जो अपनी विद्वत्ता, कला और साहित्य प्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने न केवल एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, बल्कि कला, साहित्य और विज्ञान को भी संरक्षण दिया।
The image you sent features the word "OMSHANTHI" prominently at the top, which is a common spiritual greeting or invocation, particularly in Brahma Kumaris. Below it, there's a motivational quote attributed to "Swami Mithabhaashaananda":
"MAKE SURE THAT YOUR OPPONENTS STRONGLY BELIEVE THAT YOU ARE NOWHERE NEAR TO THEM. STAY CALM. DO YOUR WORK SINCERELY. SUCCESS LIES IN ACTING AS A TORTOSIE THOUGH YOU ARE A RABBIT."
Below the text, there's a photograph of a vintage-looking blue car parked in what appears to be a snowy landscape. The car has some luggage strapped to its roof. The overall aesthetic of the image is calm and serene, likely aiming to convey a message of peace and strategic patience.
Let's break down the quote attributed to Swami Mithabhaashaananda:
* "MAKE SURE THAT YOUR OPPONENTS STRONGLY BELIEVE THAT YOU ARE NOWHERE NEAR TO THEM.": This suggests a strategy of not revealing one's full hand or capabilities to adversaries. It implies a tactical advantage gained by making opponents underestimate you, allowing you to operate unhindered or prepare for a strategic move without their immediate awareness. This can be interpreted in a competitive business environment, personal struggles, or any situation where there are opposing forces.
* "STAY CALM.": This is a universal piece of advice for maintaining composure under pressure. Calmness allows for clear thinking and effective decision-making, especially when implementing the strategy mentioned above.
* "DO YOUR WORK SINCERELY.": This emphasizes the importance of dedication, integrity, and genuine effort in one's endeavors. Sincere work, even if underestimated by others, forms the foundation for eventual success.
* "SUCCESS LIES IN ACTING AS A TORTOSIE THOUGH YOU ARE A RABBIT.": This is the core metaphor of the quote.
* Rabbit: Symbolizes speed, quickness, and perhaps natural talent or ability. If you are a "rabbit," it means you have the potential to achieve things quickly.
* Tortoise: Symbolizes slowness, steadiness, perseverance, and patience. The well-known fable of "The Tortoise and the Hare" highlights how consistent effort, even if slow, can beat raw speed and overconfidence.
* "Acting as a tortoise though you are a rabbit": This is a powerful paradox. It advises someone with inherent ability (rabbit-like speed/talent) to adopt the approach of a tortoise – i.e., be patient, consistent, understated, and not rush or display all their capabilities upfront. This aligns perfectly with the first point of making opponents underestimate you. It's about strategic under-promising and over-delivering, or quietly working towards a goal while letting others believe you are less of a threat. It also suggests that true success isn't always about being the fastest, but about being the most consistent and strategically sound.
Overall Message:
The image, through its text and visual, conveys a message of strategic patience, understated strength, and the power of consistent, diligent effort. It encourages individuals to operate smartly, not necessarily flashy, and to leverage their inherent capabilities (being a "rabbit") through a disciplined and patient approach (acting like a "tortoise") to achieve ultimate success, often by surprising or outmaneuvering perceived opponents. The "OMSHANTHI" at the top adds a spiritual or peaceful dimension, suggesting that this strategic approach can also be rooted in a calm and centered mindset. The serene, snowy setting with the classic car further reinforces a sense of calm journey and enduring presence.
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