साल के अंतिम सफर में मेरे
मन में एक प्रश्न उठा।
क्या बुराई से बुराई को जीता जा सकता है?
प्रश्न सरल है किन्तु उत्तर
अलग अलग मिलेंगे।
क्युकी हर एक मस्तिष्क अलग अलग उत्तर चुनाव करेगा।
मेरा मानना तो हें कभी नहीं,
क्युकी बुराई से बुराई को कभी जीता नहीं जा सकता।
इस तरह बुराई मरेंगी नहीं बल्कि वह शरीर बदल देंगी आत्मा की तरह,
वह जिंदा ही रहेंगी, आपके शरीर में।
राम चाहते तो रावण को बुराई करके आसानी से मार सकते थे,
फिर वो राम राम रहते?
कभी नहीं
रावण और राम समान हो जातें।
राम का जीवन आदर्श और वह पूजनीय ना रहते।
इस तरह युधिष्ठिर, हरिश्चंद्र, प्रहलाद ,जिसस ईसु, गुरु नानक,महमद पयंगबर या गांधीजी उदाहरण के तौर पर लेलों।
यह सब व्यक्ति अपने अच्छे व्यक्तित्व से ही माननीय और पूजनीय है और रहेंगे।
बुराई का रास्ता छोटा होता है पर मंज़िल में दुश्मनी ही मिलती है मैत्री या सम्मान मिलता नहीं है।