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Desai Pragati

Desai Pragati

@desaipragati1108gmail.com102305
(7)

हूँ ना मैं कितनी बेमिशाल..!
ये हवाओं में उड़ते मेरे बाल,
कुछ इतने ही मेरे ज़िंदगी के मलाल।

हूंँ ना मैं कितनी बेमिशाल..!
घने अंधेरे में बैठे जुगनू से करती हूँ सवाल,
और आशियाओं तारों से बांटती दिल ए हाल।

हूँ ना मैं कितनी बेमिशाल..!
कुछ युं ही प्रकृति के साथ बैठे कर
मैं खुदको लेती हूँ सम्भाल।

हूँ ना कितनी बेमिशाल..!
कुछ लोग समझते हैं बेवकूफ पर मैं खामोश
रह कर नहीं करती उनसे बवाल,
मुस्कुरा देती हूँ जब अपनी अच्छाई को
होते देखती हूँ हलाल।

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क्या सचमुच मैं बदल रही हूँ
या खुद से खुद को छल रही हूँ

पापा के अंगना माँ का आँचल छोड़
मैं कही और की रौनक बन पल रही हूँ

अपनी मुस्कान को छाए नये ढांचे में ढल रही हूँ
न जाने कितनी उलझनों के साथ मचल रही हूँ

सिमट के किस्तो में समेट चल रही हूँ
क्या सच मुच मैं बदल रहीं हूँ

मेरा अस्तित्व में हूँ पर मैं नही के
जैसे मृगजल हो रही हूँ...!!

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कभी कभी खुद की रूह पर भी रहम आता है की,
इतनी जल्दी सब मान जाती है इस जिद्दी जमाने मे!😌

🍁😌✨🕊️✍🏻

उसके आँशुओ का कहा कोई घर था..!
नयन मे समाया हुआ उमड़ता समंदर था ,
बाहर तकिया भीगने का डर था ,
.
उसके आँशुओ का कहा कोई घर था ,
दिल उसका बहलने को बड़ा ही बेसबर था ,
मगर कोई सब्री सुनने वाला सब्र नहीं था
.
हर कोई उस शख्स के दर्द से बेखबर था ,
खामोश मुस्कान और आँशु ही जैसे उसका स्वर था
उसके आँशुओ का कहा कोई घर था..!

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स्त्रीयाँ..!!✨🍁

नदिया सी ही तो होती है स्त्रीयाँ
जैसे प्रकृति मे समाई खूबसूरतीयाँ
.
बेह जाना और सेह जाना है स्वभाव
जो नहीं चाहती कभी माफियाँ ,
.
घुल जाये कहीभी औरो को भी संभाले,
बिठाती अपने भीतर गंदगीसे गुस्सेकी गर्मीयाँ
.
प्यास बुजाती कभी डुबोती प्रेम से खुद मे,
हो जाये कभी गुस्सेमे संदिग्ध बनके दरियाँ ..!

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papa ❤️

छोटी हो क्या कहके बड़ी भी नहीं होने देते ,
पापा ,डांट के फिर मनाये ऐसे रोने भी नहीं देते
.
आत्मनिर्भर बनो अकेले चलना सीखो कहके,
बस स्टैंड पर लेने आते समान भी ढोने नहीं देते
.
रातमे कंबल उढ़ाये सेहलाये छोटे बच्चों सा ,
सुबह उठाये जिम्मेदारो सा की सोने भी नहीं देते
.
अकेला छोड़ के बाज़ार मे खोने भी नहीं देते,
छोटी हो क्या कहके पापा बड़ी भी नहीं होने देते!

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पापा की नानी अम्मा बन के उन्हें डांटने का ,
और बिगाड़ने का एक अलग ही मजा़ है ।

जो सबके लिए बड़े है सम्माननीय बस बेटी को,
उन्हें माँ बन के डांट ने का दररजा़ है ।

कहती माँ पापा से मेरी शैतानियों पर बार बार
हर बार ये आप ही के लाड़ का नतीजा़ है ।

अब किसने किसको बिगाड़ा है ये तो बाप - बेटी
के आलावा आखिरकार कौन ही समजा है ।

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की अब प्यार कही कहीना सौदा हो गया है ,,
फरवरी अब फरेबी महीना हो गया है । 🥀

जब तक मोह हो किसी पते को शाख से गिरता क्यु नही ?🥀
गिरके भी जब तक कोई कूचल न दे बिखरता क्यु नही ?🥀
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खुदके अस्तित्व को मिटते देख वो घबराता क्यु नही ? 🥀
पतझड़ का प्रेमी बसंत मै फिर से सवँरता क्यु नही ?🥀

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क्यू चुनता हे एक इंसान खुदखुशी का रास्ता?
क्या उसे किसी से नहीं रहति हमदर्दी या वास्ता ।
.
न जाने कितना घुटा होगा कितनी होगी उनकी दर्द-ए- दास्ता ,
इतना बड़ा कदम उठाया होगा जब बढ़ गया होगा जिंदगी का बस्ता ।
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आसान नहीं होता निर्दोष होते हूए भी खुद को मोत की सजा देना,
ना जाने कितनी आत्माहत्याये कहती हे कईयो की कारश्ता ।

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