दोहा गीत
...............
सबकी अपनी सोच है, जाने कैसी रीति।
आज किसी को आप से, नहीं रही अब प्रीति।।
जीवन में मुश्किल हुए, मन मानव संबंध।
रिश्ते ऐसे लग रहे, जीवन में अनुबंध।।
सुनने को मिलते नहीं, अब प्यानरा संगीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।
मानव पत्थर हो गया, कलयुग का है दौर।
सूख रहे हैं आम के, बिना फलों के बौर।।
सभी शिकायत कर रहे, जाने कैसी नीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।
ईश्वर जाने क्यों भला, रंग हुए बदरंग।
ममता का भी आजकल, हुआ मोह है भंग।।
नियत साफ़ रखें सभी, भारी पड़े अनीति।
आज किसी को किसी से, नहीं रही अब प्रीति।।
सुधीर श्रीवास्तव यमराज मित्र)