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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(16)

"मैं" नहीं जाने वाला
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वाह हहहहहहह! जनाब
आपका भी जवाब नहीं,
एक तो आप खुद 'मैं' से दूर भी नहीं होना चाहते
और 'मैं' से ही जाने के लिए भी कह रहे हैं,
ऐसा करके आखिर किसे बेवकूफ बना रहे हैं?
या अपने ही 'मैं' को गुमराह कर रहे हैं।
जो भी हो पर आप चाहे जितनी कोशिश कर लो
'मैं' कहीं नहीं जाने वाला।
वैसे भी अभी क्या कम बदनाम हूँ?
फिर जाने का विचार कर लूँ, क्या 'मैं' बेवकूफ हूँ?
और यदि ऐसा कर भी लूँ तो क्या आप मुझे जाने देंगे?
क्योंकि आप भी तो नहीं चाहते कि मैं जाऊँ,
इसी में तो आप का अभिमान, स्वाभिमान, सम्मान है
जिसे आप धूमिल भी नहीं करना चाहते
'मैं' से एक पल के लिए भी दूर नहीं रहना चाहते।
तो मैं भी आपसे कब दूर होने की सोच रहा हूँ
वैसे ही मैं ही तो आपके जीवन का बूस्टर डोज हूँ,
जिससे आप चाहकर भी दूर नहीं हो सकते
फिर भला आप ये सोच भी कैसे सकते?
जब यहाँ हर किसी को 'मैं' का गुमान है,
कोई किसी से खुद को कम भी तो नहीं समझता।
तब भला मुझे ही क्या पड़ी है
जो मैं खुद ही अपने पैर में कुल्हाड़ी मारूँ
और आप से दूर हो जाऊँ,
और 'मैं' का अस्तित्व मिटाने का
खुद ही गुनाहगार बन जाऊँ,
नाहक ही और बदनाम हो जाऊँ
आप सबसे मिल रहे प्यार, दुलार, अपनत्व से
सदा के लिए वंचित हो जाऊँ,
'मैं' का मान, सम्मान, स्वाभिमान घोंटकर पी जाऊँ,
और सदा के लिए इतिहास बन जाऊँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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व्यंग्य
हम जी रहे हैं
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आप कह रहे हैं कि हम जी रहे हैं
चलिए मान लिया अच्छा कर रहे हैं
पर कौन सा तीर मार रहे हैं ?
या किसी पर अहसान कर रहे हैं।
सभी जीते हैं,आप भी जी रहे हैं
आखिर ऐसा कौन सा बड़ा काम कर रहे हैं,
या कोई अजूबा या बड़ा अनूठा काम कर रहे हैं,
अपने और अपने स्वार्थ की खातिर ही तो जी रहे हैं।
बड़ी चिंता है अथवा घमंड में जी रहे हैं
तो छोड़ दीजिए जीना, मेरा सिर क्यों खा रहे हैं?
अपने और अपनों के लिए तो सभी जीते हैं
किसी गैर के लिए तो आप कभी सोचते भी नहीं
फिर आप जी रहे हैं या मर रहे हैं,
इसका इतना प्रचार क्यों कर रहे हैं?
कौन मर रहा है या कौन जी रहा है
आपको फर्क भी कहाँ पड़ रहा है?
क्योंकि आप अपने जीने की फ़िक्र में
कुछ और सोच ही नहीं पा रहे हैं,
अरे! किसी और के लिए जीते
किसी और की चिंता करते
तब इतना गुरूर करते तो कुछ और बात होती।
लेकिन आप भी तो वही कर रहे हैं, जो हम कर रहे हैं
स्वार्थ की आड़ में अपने जीने की ओट में
औरों का सूकून छीनकर बड़ा खुश रहे हैं,
किसी की सुख शांति देख नहीं पा रहे हैं
शाँत तालाब में पत्थर उछाल कर अस्थिर कर रहे हैं।
सच! तो यह है कि आप जी नहीं रहे हैं
अपने आपको जबरदस्ती ढो रहे हैं
और सिर्फ गाल बजा रहे हैं कि हम जी रहे हैं,
अपने को सिर्फ और सिर्फ तसल्ली दे रहे हैं,
हम जी रहे हैं का बेसुरा राग अलाप रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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मेरी माटी, मेरा भारत
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मेरी माटी की महिमा अपार है
जान रहा इसे सारा संसार है,
भिन्न भिन्न है बोली वाणी
अरु भिन्न भिन्न परिधान है।

बहुरँगी सँस्कृति यहाँ की
और विभिन्न त्योहार है,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
सबका आपस में प्यार है।

जाति-पाति का भेद न कोई
न ऊँच नीच की बात है,
सामाजिक समरसता इसकी
दुनिया में विख्यात है।

सीना ताने खड़ा हिमालय
देता अविचल सँदेश है
दुश्मन कोई बच ना पाए,
ऐसी माटी का देश है।

नित उन्नति पथ पर बढ़ता है
नित नव गढ़ता आयाम है,
हर मुश्किल में एकजुट रहता
दे रहा सीख संदेश है।

शिक्षा, कला, संस्कृति में
नित गढ़ता बढ़ता आयाम है,
सबसे बड़ा लोकतँत्र इसका
सबसे बड़ी पहचान है।

स्वास्थ्य, परिवहन, तकनीकों में
हर दम आगे बढ़ता है,
सजग प्रहरी सीमाओं पर
सीना तान खड़ा रहता है।

नहीं किसी को दुश्मन माने
यह हम सबकी शान है,
पर आँख दिखाए यदि कोई
तो छीन ले रहा प्राण है।

आज कोई भी देश सामने
हमसे अकड़ नहीं सकता,
आँखों में आँखें डालकर भारत
सीना तान कर बातें करता।

आज विश्व में भारत को नित
मिल रहा बड़ा सम्मान है,
भारत का बढ़ता कद कहता
भारत की नव पहचान है।

सुधीर श्रीवास्तव

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मेरा भारत महान
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हमें गर्व है अपनी मातृभूमि पर
जाति -धर्म, भाषा, संस्कार, तीज, त्योहार, परिवेश पर
विकास के बढ़ते आयाम, सम्मान स्वाभिमान पर।
हमें गर्व है अपने लोकतंत्र, अपने आधार पर
अपने देश की नीति और नियंताओं पर
वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते प्रभाव संग
अपने सुरक्षा तंत्र और सैन्य बलों पर।
आँखों में आँखें डालकर बात करने की दृढ़ता पर
अतिक्रमण वाली नीति की विमुखता पर
हर व्यक्ति, राष्ट्र की खुशहाली और संपन्नता की नीति पर
देश के दुश्मनों को माटी में मिलाने की नीति पर।
खुद को समर्थ और मजबूत करने की नीति पर,
हमें विश्वास है अपनी माटी, अपनी मातृभूमि पर,
हमें गर्व है अपने तिरंगे और तिरंगे की शान पर,
हमें शिकायत नहीं अपने देश और देश की व्यवस्था पर
अपने देश, अपनी माटी और अपनी संवेदनशीलता पर
क्योंकि ये देश मेरा है, और हम इसकी संतान हैं,
जिस पर हमें गर्व है कि मेरा भारत महान है।

सुधीर श्रीवास्तव

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कर्मों का बहीखाता

हम सब जानते हैं
जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल पायेंगे
गीता का यही ज्ञान, है जीवन का विज्ञान।
कौरव पाँडव का उदाहरण सामने है
रावण विभीषण, सुग्रीव बाली के बारे में
हम सब जानते हैं
कँस का भी ध्यान है या भूल गए।
सबका बहीखाता चित्रगुप्त जी ने सहेजा,
किसी को राजा तो किसी को प्रजा
तो किसी को रंक बनाकर भेजा
अमीर गरीब का खेल भी मानव का नहीं
कर्मानुसार उसके बहीखातों का खेल है।
यह और बात है कि हमें
अपने पूर्व जन्म या जन्मों का ज्ञान नहीं होता,
इसीलिए अपने कर्मों का भी हमें पता नहीं होता।
और हम सब इस जन्म के साथ ही
पूर्वजन्मों के कर्मों का फल पाते हैं।
क्योंकि हमारे कर्मों का बही खाता निरंतर भरता रहता है,
उसी के अनुसार कर्म फल का निर्धारण होता है
और हमें अच्छा बुरा कर्म फल मिलता है।
वर्तमान जीवन में ही नहीं मृत्यु के बाद भी
चित्रगुप्त जी के बहीखाते में दर्ज
हमारे कर्मों के अनुसार ही
कर्म फल का निर्धारण होता रहता है,
सत्य यह भी है कि हमारा एक एक कर्म
चित्रगुप्त जी के बहीखाते में
दर्ज़ होने से कभी छूटता भी नहीं,
इसीलिए तो इसे कहा जाता है
कर्मों का बहीखाता।

सुधीर श्रीवास्तव

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कण कण में प्रभु
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प्रभु तुम कण कण में हो
धरती हो या आकाश
मनुष्य हो या जानवर
पेड़ पौधे फूल पत्तियों में
है तेरा निवास।
सजीव हो निर्जीव हो
छोटा हो या बडा़
कीड़े मकोड़े, कीट पतंगे
या पत्थर की मूर्ति हो
इस जहाँ के हर कण में
प्रभु तेरा वास।
धर्मी हो या अधर्मी
चोर हो या चांडाल
बिना भेदभाव का सबसे
रखते सम व्यवहार।
बस!महसूस करने की
जरूरत है,
हर पल ,हर कहीं
तुम्हारे होने के लिए
विश्वास की जरूरत है।
क्योंकि हर कण,हर पल,हर जगह
तुम होते हो,
कोई समझे,न समझें,
माने या न माने
कोई श्रद्धा के फूल चढ़ाए
या अविश्वास का आरोप लगाए,
फिर भी तुम
हर जगह पाये जाते हो,
हर पल,हर क्षण,हर कहीं
अपने होने का कर्तव्य
सतत,अबाध निभाये जाते हो।
प्रभु!तुम कण कण में हो
अहसास कराये जाते हो।

■सुधीर श्रीवास्तव

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सुख दुख का साथी
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सुख दुख का साथी
हम किसे मानते हैं,
कभी मां बाप भाई बहन
परिवार, रिश्तेदार को
अपना साथी समझते हैं
या अपने जीवन साथी
या फिर अपने बच्चों को
कभी कभी मित्रों शुभचिंतकों को।
मगर ये सब भ्रम है
या दिवास्वप्न जैसा है
जिस पर विश्वास अपवाद में ही
सफल हो पाता है।
सुख दुख का सबसे अच्छा साथी
हम आप खुद और हमारा विश्वास है
यदि खुद पर विश्वास है हमें
तो यही विश्वास हमारा साथी है,
अपने विश्वास से बड़ा साथी
न कोई है, न हो सकता है
इसलिए खुद पर विश्वास कीजिए
सुख और दुःख दोनों में ही
अपने विश्वास को
विश्वसनीय साथी मानिए।

सुधीर श्रीवास्तव

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अच्छा होगा
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मन के परिंदे ने अभी तक
हौसला नहीं खोया है,
उसका आत्मविश्वास
अभी नहीं सोया है।
थोड़ा डगमगा जरूर रहा है
पर पीछे हटने का मन भी
भला कहाँ हो रहा है?
क्योंकि
अभी भी उम्मीद का जुगून
दूर ही सही चमक रहा है,
बस मात्र यही चमक
हौसला बढ़ा रहा है।
मन का आत्मविश्वास
फिर से मजबूत हो रहा है,
कालिमा छँटेगी,प्रकाश फैलेगा
चेहरों पर छाई निराश की जगह
मुस्कान फिर से होगा
न विश्वास टूटा है,न टूटेगा
कुछ भी हो जाय आस न छूटेगा
शायद इसीलिए
धैर्य मजबूत हो रहा है,
आने वाले हर पल के साथ
निश्चित ही कल अच्छा होगा
हर चेहरे पर मुस्कान
हर ओर खुशियों का डेरा होगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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मैं कौन हूँ?
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प्रश्न कठिन है ये कह पाना
कि मैं कौन हूँ?
कोई भी विश्वास से कह नहीं सकता
कि मैं कौन हूँ?
पर दंभ में चूर होकर
जाने कितने यह तो कहते हैं
तुम्हें पता भी है कि मैं कौन हूँ?
धमकी से दबाव बनाने का
भौकाल जरूर बनाते हैं,
परंतु सच में मैं कौन हूँ का
अहसास कहाँ कर पाते।
यह विडंबना नहीं तो क्या है?
मैं कौन हूँ के नाम पर
रोब गाँठते फिरते हैं ,
यह जानने की जहमत तक
नहीं उठाना चाहते कि
कि वास्तव में मैं कौन हूँ।
मैं कौन हूँ यह जानना
बड़ा ही मुश्किल है,
फिर भी खोज में लगा हूँ
शायद अगले...अगले या फिर
अगले पलों में ही सही
यह जान तो सकूँ
कि मैं कौन हूँ।

● सुधीर श्रीवास्तव

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व्यंग्य
अवध में राम आये हैं
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अजीब तमाशा है
जैसे हमें पता ही नहीं है
कि अवध में राम आये हैं।
चलिए! आपने कहा तो हमने मान भी लिया
पर क्या आप मेरी भी बात मानेंगे?
या अपने ज्ञान का ही ढिंढोरा पीटते रहेंगे
राम जी तो त्रेतायुग में ही आ गये थे
और आप अब कह रहे हैं कि राम जी अब आये हैं।
अरे भाई! यदि आप कहें
कि अब अयोध्या के राम मंदिर में राम आये हैं,
तो हम भी आपके सुर में सुर मिलाएंगे।
वैसे भी क्या फर्क पड़ता है ?
कि राम आये थे या राम आये हैं,
कौन सा मुँह लेकर हम उनके स्वागत में गीत गा रहे हैं?
हम आप तो जाति, धर्म, हिंदू-मुसलमान
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों में फँसे हैं
वोटों की राजनीति में उलझे हैं,
अनाचार, अन्याय, भ्रष्टाचार के दलदल में फँसे हैं
हिंसा, अपराध, व्यभिचार और
स्वार्थी मानसिकता में जकड़े हैं।
राम आये हैं चलो अच्छा है
न आते तो और भी अच्छा होता,
क्योंकि बड़ा प्रश्न है
कि हमारे कौन से कर्म धर्म देखकर
राम जी हम पर अपनी कृपा लुटाएंगे?
अब आप तो मानोगे नहीं
पर मैं तो यही कहूँगा
कि राम जी आयें हैं तो परेशान होकर सिर्फ पछताएंगे।
अब जब आप कह रहे हैं कि अवध में राम आये हैं
तब क्या हम-आप सब ये सौगंध उठायेंगे
कि हम सब राम जी की मर्यादा की लाज बचायेंगे,
रामराज्य के अनुरूप अपना आचरण बनायेंगे?
यदि हाँ! तो विश्वास कीजिए तभी राम जी आयें हैं।
वरना इस मुगालते में न रहिए कि राम जी आयें हैं
आये भी हैं, तो सिर्फ राम मंदिर में बैठे रह जायेंगे
अब हम हों या आप सिर्फ झुनझुना बजाएंगे
और फूले नहीं समा रहे हैं
कि अवध में राम आये हैं,
और हम-आप मिलकर सिर्फ कोरा रामधुन गा रहे हैं
और बड़ी बेशर्मी से राम जी को भरमा रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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