कोई आवाज़ सी, खामोशियों में गुम है
जैसे आँखों में कोई ख़्वाब पुराना सो गया हो।
दीवारों पे कुछ साए ठहरे-ठहरे से लगे,
जैसे यादों ने किसी लम्हे को क़ैद कर लिया हो।
बारिश की बूँदों में तेरी हँसी गूँजे कहीं,
और फिर अचानक ख़ामोशी का पर्दा गिर जाए।
अल्फ़ाज़ लबों तक आके थम से गए,
जैसे तू कहने को था... पर वक़्त रुक गया हो।
दर-ओ-दीवार पे तेरे नाम की महक है,
जैसे ख़त किसी ने ख़ुशबू में भेजा हो।
रात की चादर में लिपटी कुछ बातें बाक़ी हैं,
जो चाँद को भी सुनाई... मगर वो भी चुप रहा हो।
कभी बिस्तर की शिक़नों में तेरा नाम मिलता है,
कभी तकिए पे भी आँसुओं का सवाल रहता है।
किसी दबी सी फ़रियाद की तरह,
तू दिल के कोने में अब भी सिसकता है...