#मूंछ #चंद्रविद्या
मिट्टो तुम्हारी मूंछे होती
होती तो फिर वह कैसी होती ?
छोटी लंबी पतली काली ।
अलबेली– सी बड़ी निराली ।
या फिर अभिमान में ऐंठी होती
मोटी तगड़ी घणी बाबरी ,
पहलवानों सी बैठी होती ।
शायद या फिर समय का चस्का होता ।
अपने अपने रस का होता
आधुनिकता का रंग चढ़ाए
अंग्रेजी पढ़ी –लिखी वह
होती थोड़ी हाय–फाय ।
रिंकी उर्फ चंद्रविद्या