हवा में मिल जाऊँगा
तो दिखूँगा कहाँ,
अँधकार में रहूँगा
तो दिखूँगा कहाँ!
आकाश में मिल जाऊँगा
तो कब तक दिखूँगा,
पाताल में रहूँगा
तो कैसे दिखूँगा!
नीति में रहूँगा
तो न्याय में दिखूँगा,
सत्य पर रहूँगा
तो पुण्य में ठहरूँगा।
लय में रहूँगा
तो गीत में मिलूँगा,
शान्ति में रहूँगा
तो शुद्धता में आऊँगा।
*** महेश रौतेला