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महेश रौतेला

महेश रौतेला Matrubharti Verified

@maheshrautela
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नैनीताल( विद्यालय के दिन):

वहाँ मेरा होना और तुम्हारा होना
एक सत्य था,
इस बार वहाँ जाऊँगा
तो सोहन की दुकान पर
चाय पीऊँगा,
रिक्शा सटैंड पर बैठ
कुछ गुनगुना लूँगा,
बिष्ट जी जहाँ खड़े होते थे
वहाँ से दूर तक देखूँगा,
यादों की बारात में
तुम्हें खोजते-खोजते
नीचे उतर आऊँगा।
नन्दा देवी के मन्दिर में जा
सभी देवी देवताओं को धन्यवाद दे
कहूँगा कि जैसा चाहा वैसा नहीं दिया
पर जो दिया वह भी मूल्यवान है
जन्मों का फल है,
नैनी झील को
नाव से पार करते समय
देख लूँगा वृक्षों के बीच दुबके छात्रावासों को,
धूप सेंकने बैठे
खिलखिलाते-शरमाते चेहरों की ओर
जो लगता है हमारे जमाने से बैठे हैं।
हवा जो बह रही है
उससे पूछ लूँगा
तुम कब तक रूकोगी यहाँ,
वृक्ष जो छायादार हैं
उनसे पूछ लूँगा
कब तक फलोगे यहाँ पर,
जब उत्तर मिलेंगे
तब तल्लीताल आ जाऊँगा।
डाकघर पर
अपनी पत्र की प्रतीक्षा में
खो जाऊँगा दीर्घ सांस लेकर।
इधर मिलना
उधर मिलना
पैरों से कहूँगा रुक जाओ
नहीं होगा पार मन, शाम घिर आयी है।
ठंडी सड़क को
पड़ी रहने दें एकान्त में,
पाषाण देवी के मन्दिर जा, सोचें
चलो लौट चलें गाँव के पास।
देवदार के पेड़
अपनी छाया में
मिला लेंगे हमारी छाया,
हम समय के द्वार खोल
अन्दर हो आयेंगे,
बत्तखों को देखते
चलते-फिरते,आते-जाते
स्वयं को भूल जायेंगे।
अपने को भूलने के लिए
बुद्ध होना होगा,
अपने को भूलते हुये
किसी से भी मिल लेंगे,
आटे की दुकान से आटा खरीद लेंगे
चावल की दुकान से चावल
तेल की दुकान से तेल
और पका लेंगे अपना खाना।
कभी-कभी प्यार का सुर सुन
हो जायेंगे उदास।
समय का कोई ठिकाना नहीं
विद्यालय की कक्षा में बैठ
ज्ञान-विज्ञान के आश्चर्य जान लेंगे,
मन नहीं मानेगा तो
आकाश और धरती को देख खुश हो लेंगे,
बर्फ के गोलों की ठंड
स्वयं ही नहीं दोस्तों को भी छुआयेंगे,
अपने को ही नहीं
दूसरे को भी देखेंगे,
फूल सी हँसी कभी कहीं से झड़
बना सकती है लम्बा मार्ग,
मनुष्य के लिए सब कुछ सरल नहीं
कभी वह आग में जल सकता है
कभी बाढ़ में बह सकता है,
हर चाह चकित करती है
मरने के बाद फिर जीवित होती है।
हस्तलिखित हमारा मन
मालरोड के पुस्तकालय में पढ़
सारे समाचारों को इकट्ठा कर
एक-दूसरे को बतायेगा,
तब हमारी दुनिया
वहीं इकट्ठी हो जायेगी।
इसी बीच कहने लगूँगा
"ठंड में मूँगफली, सिर्फ मूँगफली नहीं होती,
प्यार की ऊष्मा लिए
पहाड़ की ऊँचाई को पकड़े होती है।
हाथों के उत्तर
चलते कदमों की साथी,
क्षणों को गुदगुदाती
बातों को आगे ले जाती,
सशक्त पुल बनाती
उनको और हमको पहचानती,
तब मूँगफली, सिर्फ मूँगफली नहीं होती.
(वही मूँगफली जो साथ-साथ मिलकर खाये थे।)"

*** महेश रौतेला

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प्यार के लिए रोये हो
क्या तुम!
हाँ, गाय भी रोई है
भैंस भी रोई है,
हाथी भी रोया है
शेरनी भी रोयी है,
बकरी भी रोयी है
प्यार के लिए सब रोये हैं।

*** महेश रौतेला

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समय अभी तो महल रचेगा
महल बनाकर ध्वस्त करेगा,
जीवन में आग लगाकर
उसे हवा दे तीक्ष्ण करेगा।

सब नदियों में बहा करेगा
तीर्थ बनाकर पवित्र बनेगा,
विशाल समुद्र में थमा रहेगा
सबके हाथों बँटा करेगा।

टूट- फूट में रमा करेगा
जीवन से बहा करेगा,
सूखी लकड़ी वह जलाकर
स्वयं सदा गरम रहेगा।

किसी युद्ध से नहीं डरेगा
भू-जीवन पर चला करेगा,
महल बनाकर राज करेगा
ध्वस्त हुआ तो नया रचेगा।


*** महेश रौतेला

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ये रिक्तता, ये खालीपन
तेरा होना बतलाता है,
यह सन्नाटा, यह सूनापन
तेरा रहना कहता है।


*** महेश रौतेला

शान्त हो जा मन, शान्त हो जा
आयु भी शान्त हो चुकी,
घर की खिड़की पर
शान्त धूप आ चुकी है।
दृष्टि में आसमान आकर
लहराने लगा है,
तपस्वी सा खड़ा पहाड़
तृप्त लग रहा है।
दूरी नहीं नजदीकियां
पास आ गयी हैं,
मीठी बातें बोलकर
शान्त हो जा अदृष्ट मन।
सामने हिमालय के शिखर
शान्त दिख रहे हैं,
वृक्ष भी शान्त हैं
जल शान्त बह रहा है,
क्षितिज शान्ति की लकीर खींच चुका है।
फसलें शान्त हैं
खेत तृप्त हो चुके हैं,
हवायें शान्त होने के लिए
ऊपर उठ रही हैं,
शान्त हो जा मन, शान्त हो जा।

*** महेश रौतेला

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अल्मोड़ा:

मेरा जान पहिचाना पटाल वाला शहर
आसमान से ढका,
नक्षत्रों के नीचे
सबकी प्रतीक्षा में बूढ़ा हो गया है।
कहने लगा है
दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियां
सुख-दुख भरा इतिहास,
करने लगा है अनुसंधान
खण्डहरों की माटी में घुसकर।
राजा आये-गये
शासक बने-बिगड़े
पताकायें उठी -ठहरी,
अब तक लोगों के काँधे पर
खड़ा है
मेरा जान पहिचाना शहर।
सामने अपलक-स्थिर खड़ी वह बात
बूढ़ी हो चुकी है,
मेरा जान पहिचाना शहर
उदास क्षणों में भी जगमगा रहा है।
तीक्ष्ण हो चुकी दृष्टि
हर मुहल्ले को झांक,
उस पते को ढूंढती है
जो मिटा नहीं है।
हम निकलकर आ गये
बाँहों को छोड़,
मुस्कानों को तोड़
हिमालयी हवा को पोछ
स्मृतियों के मोड़
पर शहर है कि थपथपाने को खड़ा है।

*** महेश रौतेला

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जब वह नहीं देखता
तो हम देखेंगे,
चहचहाती चिड़िया को पता चलेगा
घास चरते पशुओं को भी मालूम पड़ेगा।
जंगलों को महसूस होगा
तैरती मछलियां जानेंगी,
राह चलते राहगीर बोलेंगे।
लोग जानेंगे, पहिचानेंगे
हमारी सड़क की दशा
स्कूल की दिशा,
शिक्षा का स्वास्थ्य
स्वास्थ्य की दशा,
और भ्रष्टाचार के कार्यालय तक पहुँचेंगे।
लेकिन कहते हैं
वह सब देखता है,
कहते हैं,सोचते हैं
"उसकी लाठी में आवाज नहीं होती।"
लेकिन जब वह नहीं देखता
तो हमें देखना होगा।
****

*** महेश रौतेला

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हे कृष्ण
कब लौटूँ,किधर लौटूँ
जब लौटूँ तो
निरामय रहूँ।
हे कृष्ण
कब लौटूँ,किधर लौटूँ
कैसे लौटूँ ,
लौटूँ अभिमन्यु की तरह
या परीक्षित की तरह,
या पांडवों की तरह हिमालय होकर
या युधिष्ठिर की तरह सशरीर आऊँ,
कुत्ते के साथ।
***

*** महेश रौतेला

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तुम हमारी बात में
हम तुम्हारी बात में,
निरक्षर पेड़-पौधों की
बहुत सुन्दर छाया है।

तुम हमारी बात में
हम तुम्हारी बात में,
निरक्षर नदियों में
बहुत मीठा पानी है।

तुम हमारी बात में
हम तुम्हारी बात में,
निरक्षर गाय-भैसों का
बहुत सफेद दूध है।

तुम हमारी बात में
हम तुम्हारी बात में,
निरक्षर फूलों पर
बहुत सुन्दर रंग हैं।

*** महेश रौतेला

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मैंने बिछाई थी दृष्टि तुम्हारे लिए
जैसे धूप बिछी होती है,
खिसकाया था उसे
जैसे देवदार की छाया खिसकती है।
घुमायी थी दृष्टि
पगडण्डियों की तरफ
जहाँ तुम्हारा आना-जाना था।
कितना जोड़-घटाना
गुणा-भाग होता है
जिन्दगी के अविभाज्य गणित में।

*** महेश रौतेला

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