उठो पहाड़
प्यार की गुनगुन सुनो,
बुरांश फूल चुके हैं
बसंत आ चुका है,
बातचीत के शीर्षक बदल चुके हैं
कुछ राहें खुली हैं
कुछ रास्ते बन्द हो गये हैं।
सुख-दुख की गूँज के बीच
मेरी कहानी को विस्तार दे
एक फूल और जोड़ दो,
उठो प्रिय
प्यार की गुनगुन सुनो।
*** महेश रौतेला