केशव मंद हँसी तुम हँस देना
ऐसे ही गीता कह देना,
लघु प्राणी के लिए तुम
विराट रूप में आ जाना।
जब विपत्ति धरा पर आती है
विश्वास सर्वत्र मरता है,
लघुता की लघु सम्पत्ति
वृक्षों सी उखड़ने लगती है।
अर्ध सत्य कहते-कहते
ये जीवन घराट सा घूमा है,
पाँच गाँव की चाह थाम
यह धरा लहू से बँटती है।
केशव व्यथा तुम्हारी भी है
युद्ध टले तुम चाहे हो,
मरने-जीने के संदर्भ छेड़
फिर गीता कहने आये हो।
* महेश