जिनके जुल्म से तड़पी थी ये ज़मीं हमारी,
जिनके घाव से रोई थी माँ भारती प्यारी।
उन फिरंगियों के रंगों को अपनाऊँ कैसे,
अपने लहू के दीप को भुलाऊँ कैसे।
भगत, आज़ाद, सुखदेव की है जो पहचान,
उनकी कुर्बानी का रखूँगा मैं मान।
जिन्होंने जलाया सपनों का संसार,
उनके लिए क्यों सजाऊँ त्योहार।
हमारा हर पर्व हमारी माटी का हो,
जिसमें बस भारत की ही बात हो।
ग़ुलामी के रंगों को अब मिटा दो यार,
चलो मनाएँ सिर्फ़ "अपनी धरती, अपना त्योहार।" - ©️ जतिन त्यागी