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माँ की ममता, पापा का प्यार, जीवन की राहों में उनका आशीर्वाद अपार। जब हम थक जाएं, वो हमें संजीवनी देते, अपने त्याग से, हर रुकावट को पार कराते।। माँ की आँखों में बसी है शांति की गहराई, पापा के दिल में हर दर्द की समझाई। उनकी चुप्प रहकर भी, वो हमें सिखाते हैं, जन्मों तक हमें अपने साथ लेकर जाते हैं।। माँ के हाथों का जादू, पापा के शब्दों की शक्ति, दुनिया की कोई कठिनाई नहीं, जो हो सके उनकी ममता से कमज़ोर। जब भी हम गिरते हैं, वो हमें फिर से उठाते हैं, उनकी मौजूदगी से ही हम खुद को ताकतवर पाते हैं।। माँ की दुआएं और पापा का विश्वास, ये हैं हमारे जीवन का सबसे सच्चा प्रसाद। कभी न थमने वाली यह यात्रा उनकी छांव में, हर आशीर्वाद उनका हमारे साथ हो हर एक मोड़ में।। मातृ-पितृ पूजन दिवस पर, हम नमन करते हैं, उनकी तपस्या और बलिदान को हम सम्मान देते हैं। उनके बिना हम कुछ भी नहीं, यह जीवन केवल उनका है, उनकी महिमा में बसी है हर खुशी, हर सुख, यही हमारा विश्वास है।। - ©️ जतिन त्यागी
चली थी बस वतन के रक्षकों की, उम्मीदों से भरी, किसे खबर थी, राह में मौत छुपी होगी खड़ी? एक धमाका… और चीखों का तूफ़ान आ गया, धरती भी कांप उठी, आसमान स्याह हो गया। टूटे थे सपने माँओं के, बहनों के सुहाग छिने, नन्हे हाथों से छूट गए, पिता के मजबूत हाथ कहीं। वो जो घर लौटने वाले थे, तिरंगे में लिपट गए, जो वादे किए थे अपनों से, वो अधूरे ही मिट गए। पत्नी की आँखों में आँसू, पर माथे पर गर्व था, बेटे ने कहा – "पापा लौटेंगे, ये तो बस स्वप्न था!" माँ ने बहाकर अश्क कहे – "मेरा लाल मरा नहीं, जितने जन्म लूँगी, हर बार मैं फौजी को ही जनूँगी!" बर्फीली घाटी भी रोई थी, गंगा की लहरें रो पड़ीं, हिमालय के सीने में भी, गहरी दरारें हो पड़ीं। हर चिंगारी एक शोला बन, दुश्मन को जलाएगी, अब कोई भी गद्दार, हिंदुस्तान को न झुकाएगी। ये घाव भले भर जाएं, पर दर्द सदा रहेगा, हर सैनिक का बलिदान, देश कभी न भूलेगा। हम झुकेंगे नहीं, मिटेंगे नहीं, हर आतंकी से बदला लेंगे, रुकेंगे नहीं! - ©️ जतिन त्यागी
जब-जब अंधकार घना हुआ, जब-जब सत्य दबाया गया, तब-तब संतों ने आकर के, मानव धर्म जगाया था। ऐसे ही एक संत महान, जन्मे थे काशी धाम, जिनकी वाणी में बसा, सच्चा प्रेम, सच्चा राम। जात-पात के बंधन तोड़े, हर मानव को एक कहा, भक्ति में जो लीन हुआ, वही हुआ रैदास सहा। "मन चंगा तो कठौती में गंगा" – जीवन मंत्र सुनाया था, सच्ची साधना क्या होती है, यह खुद करके दिखाया था। राजमहल भी छोटा लगता, जब भावों की गूँज उठी, हर निर्धन, हर पीड़ित के मन में, भक्ति की जोत जली। कर्मयोग का पाठ पढ़ाया, मानवता का गीत सुनाया, हर हृदय में प्रेम जगाकर, समाज को नव रूप दिलाया। तेरी वाणी, तेरे वचन, आज भी प्रेरणा देते हैं, रविदास तेरी भक्ति में, युग-युग तक जन जीते हैं। - ©️ जतिन त्यागी
धरा धन्य थी, गगन गूंजा, जब ज्योति जली अनमोल। एक युगपुरुष ने भर दिया, भारत में नव अनुकूल।। गांव-गांव की माटी में था, जिनके स्वेद का सन्मान। साधारण वेश में छिपा था, नेतृत्व का नवल प्रमाण।। अंत्योदय का जोत जलाया, हर नयनों में स्वप्न भरा। जन-मन के हर कोने को, दीप समान उज्ज्वल किया।। एकात्म मानववाद की, अमर ज्योति जलाने आए। राजनीति को धर्म दिया, और स्वराज का मंत्र सुनाए।। न सत्ता की लालसा रखी, न स्वयं को ऊँचा माना। जनता की सेवा को ही, जीवन का सच्चा गहना जाना।। सनातन संस्कृति का प्रहरी, नीति, धर्म का संग था। शोषित, वंचित, पीड़ितों के, संघर्षों में रंग था।। नभ के नक्षत्र से चमकते, उनके आदर्श, उनके स्वर। भारत माँ की आत्मा में, अमर रहेगा यह अवतार।। गंगा-यमुना साक्षी बनकर, उनकी गाथा गाएंगी। जन-जन के मन मंदिर में, प्रतिमा बनकर आएंगी।। तेरी वाणी, तेरी ज्योति, हर युग में रहे अमर। पंडित दीनदयाल तुझे, शत्-शत् नमन यह सुमन अर्पण।। - ©️ जतिन त्यागी
अ से अनार, आ से आम, मिलकर बोलो जय श्रीराम। इ से इमली, ई से ईख, रामायण सिखाती, सबको अच्छी-सीख।। उ से उल्लू, ऊ से ऊँट, राम नाम का भर लो हर कोई घूंट। ए से एड़ी, ऐ से ऐनक, श्रीराम का रथ, हनुमानजी के साथ।। ओ से ओखली, औ से औरत, राम नाम से सजी है हर मूरत। अं से अंगूर, अ से आकाश, राम का नाम है सबसे खास।। भक्तों बजाओ, जोर से ताली, असीम होगी तुम्हारी झोली खाली। - ©️ जतिन त्यागी
जहां सपने उड़ते हैं, वो मैदान, सवेरा हो और हो रौशन स्थान, एक गेंद, एक गोल, एक रास्ता तय, जहां चैंपियन उठते हैं, और डर भाग जाए। हर पास में, हर किक में, एक कहानी बयां होती है, गहरी और तेज़, झूमते हैं दर्शक, और चुप होती दुआ, फुटबॉल के प्रेम में, जो बेमिसाल है। हर संघर्ष से, ताकत मिलती है, हर हार में, दिल की क़स्में जुड़ती हैं, फिर से उठते हैं, फिर से लड़ते हैं, एक सच्चा योद्धा ही चमकता है। हर चुनौती में, एक मौका है बढ़ने का, एक विरासत बनती है, एक ज्वाला दिखाने का, हरे मैदान में, आत्मा मुक्त है, साथ मिलकर हम उठते हैं, एक होकर रहते हैं। जतिन त्यागी, एक नाम जो हम जानते हैं, हमें ताकत देते हैं, जहां सपने बहते हैं, फुटबॉल सिर्फ खेल नहीं है, यह जीवन है, यह जुनून है, यह जलती हुई आग है। जीवन के खेल में, हमें सबको खेलना है, साहस और दिल से, हर दिन बढ़ना है। - ©️ जतिन त्यागी
पीली चूनर, हल्का रंग, आई ऋतु बसंत के संग। फूलों में महके नव गान, कोयल गाए मधुर तान। सरसों खेतों में मुस्काए, पवन सुगंधी साथ लाए। गगन में उड़ती पतंग प्यारी, देखो ऋतु कितनी न्यारी। वीणा संग माँ आई आज, ज्ञान की बरसे अब सुराज। हंस सवार, श्वेत परिधान, देती विद्या का वरदान। बालक बनें गुणी-सुजान, जग में फैले सत्य विधान। मन में हो नव चेतना आई, ज्ञान-ज्योति हो सदा जगाई। आओ गाएँ संग में गीत, माँ का करें सदा वंदन, ज्ञान, बुद्धि, और प्रेम से, रखें सदा मन पावन। - ©️ जतिन त्यागी
नेताजी, तुम भारत के हो अभिमान, तुमसे रोशन हुआ देश का स्वाभिमान। हर दिल में जलाया स्वतंत्रता का दीप, तुमने दिखाया साहस का अद्भुत रूप। "तुम मुझे खून दो," जो तुमने कहा, हर युवा ने अपना जीवन तुम्हें दिया। तुम्हारे शब्दों में थी जो शक्ति महान, जगा गए हर हृदय में आज़ादी का गान। दुश्मनों के लिए बन गए एक डरावना नाम, भारत माता के लिए दिया जीवन का दान। आजाद हिंद फ़ौज की जो गाथा सुनाएँ, तुम्हारे साहस को सदा याद दिलाएँ। तुमने दिखाया लड़ने का वो जोश, हर भारतीय के दिल में उठी गर्व की लहर। तुमसे सीखा कि क्या है त्याग, तुम हो देशभक्ति का अमर प्रकाश। आज प्रकर्म दिवस पर करें नमन, तुम्हारे आदर्श बनें हर जीवन। सतत प्रेरणा के स्रोत हो तुम, नेताजी, भारत के भाग्य हो तुम। शत-शत नमन, हे वीर महान, तुमसे बना है भारत का मान। - ©️ जतिन त्यागी
तुमने रच दी मधुशाला की गाथा, जहाँ हर घूँट में बसी थी परिभाषा। संसार को सिखाया तुमने यह पाठ, “जीवन है मधु, दुख-सुख के साथ।” तुम थे शब्दों के साधक, अद्भुत शिल्पकार, भावनाओं को दिया तुमने अमर आकार। तुम्हारी लेखनी में झलका जो प्रकाश, वो मिटा गया हर हृदय का अंधकार। “निशा निमंत्रण” में रात्रि का श्रृंगार, “सतरंगिनी” में सजी जीवन की धार। तुम्हारी कविता, जैसे गंगा की धार, हर मन को कर दे पवित्र, अपार। तुमने कहा, "अग्निपथ मत छोड़ना, हर बाधा को ठोकर में मोड़ना।" तुम्हारे शब्दों में संघर्ष की पुकार, हर युवा के लिए बने जीवन का आधार। तुम केवल कवि नहीं, एक युग थे, हरिवंश जी, तुम साहित्य के भुजंग थे। तुम्हारे बिना अधूरा है हिंदी का जहाँ। श्रद्धा के दीप आज जलाते हैं, तुम्हारे चरणों में शीश झुकाते हैं। तुम अमर हो, अमर रहोगे हरिवंश, तुम्हारे शब्दों से जीवित रहेगा सारा ब्रह्मांश। - जतिन त्यागी
रुद्र हूँ, जहर पीकर भी मुस्कुराया हूँ, फिर क्यों मधु की कामना करूँगा? जब दे चुका अस्थियाँ इन्द्र के लिए, जब विष का पात्र पी गया बिना शिकन, तो विध्वंस की कल्पना भी क्यों करूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? देह को जलाया है, राख में सपने बोए हैं, हर झोंपड़ी को उजाले से भरकर, अट्टालिकाओं को झुकाया है। दीपक हूँ, तिमिर से संघर्ष है मेरा, तो अंधकार से समझौता क्यों करूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? मेरे द्वार खुले हैं हर पीड़ित के लिए, साँपों को भी दूध दिया है इस आँगन ने। जीतकर शत्रु को, दया का वरदान दिया, तो अपने घर में द्वेष क्यों भरूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? ठोकर मार दी ऐश्वर्य को, भिखारी बना, पर स्वाभिमान नहीं खोया। फिर भी क्यों तुम्हारी आँखों में जलन है? जब हृदय पर राज्य कर चुका, तो क्षणिक सिंहासनों की ख्वाहिश क्यों करूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? मैं वो चिंगारी हूँ, जो राख में भी जिंदा रहती है, मैं वो तूफ़ान हूँ, जो रास्ते खुद बनाता है। जहर पीने वाला रुद्र हूँ, मधु की याचना मेरी फितरत नहीं। है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? - ©️ जतिन त्यागी
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