ऊलफते ईश्क का गुलाब हर चमन नही खीलता ,,
सच्ची महोब्बत का सुकु हर कीसी को नही मीलता।

हसी देख लबो की हर कीसी को हसी ही लगे हम ,,
दीलमें क्यां उलजनोका काफला हे ? मर्ज नही मीलता।

गऐ थे मयखाने में ईलाज ढूंढने हम ,,
हर कोई दील का वहा मरीझ नीकला।

कोन कहेता हे कम्बख्त की पानी आग बुजाता हे ?
आंखोके रस्ते दीलमें उठती तपीशको कोई नही पुछता।

मुसाफिर तो कई हे इस खुबसुरत दुनिया में अमी ,,
मगर हर मुसाफिर को मंझील का पता नही मीलता।

अमी.....
#Drama

Hindi Poem by ︎︎αʍί.. : 111934551
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