जिंदगी तूने मुझे फिरसे रुला दिया
मोती यू गिरे आँखोंसे "
सितम ढाए कैसे , आँखे नम हो गई

खुशिया मानो खो गई कही
रिश्तों की तिज़ोरीया खाली पड़ी
हर सितम हिसाब मांगने लगा
वक़्त फिरसे जितगया हमसे "

माथे के हर लक़ीर पे जीत लिख़ने चले हम
मुक्कमल न हुआ हौसला मेरा
तूने फिर बाजी पलट दी "

हैसियत बया ही न कर सका मैं ...
मानो जैसे सब ख़तम हो गया
मैं फ़िर खड़ा हूँ जिंदगी द्वार तेरे
जीतकर आउंगा दुनिया मैने ठान लिया "

English Poem by Kavi Sagar chavan : 111921032
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