मुश्किल लगता है
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अंतर्मन की व्यथा सुनाना
सच में मुश्किल ही लगता है।
कितने ही हैं घाव टीसते पर
दर्द दिखाना मुश्किल लगता है।
मारी जाती कन्याएँ गर्भ में
जीवन देना मुश्किल लगता है।
जीवन यदि मिल भी जाए तो
गिद्धों से बचना मुश्किल लगता है।
आत्मनिर्भर बनाने का दंभ करें
पर करना ऐसा मुश्किल लगता है।
राशन केवल दे देने से गरीब को
उसका जीवन मुश्किल लगता है।
समस्याएँ हैं कितनी सारी देश में
समाधान यहाँ मुश्किल लगता है।
दंभी राजा ही अत्याचार करे जब
न्याय प्रजा को मुश्किल लगता है।
फूट डालो करो राज की हो नीति
तो देशोत्थान मुश्किल लगता है।
एक दूजे पर करते रहें दोषारोपण
तो साथ निभाना मुश्किल लगता है।
जब लकड़ी का गठ्ठर बन जाए तब
तोड़ पाना उसे मुश्किल लगता है।
उसी तरह यदि सब जन मिल जाएँ
फूट डालना बड़ा मुश्किल लगता है।
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रचनाकार - प्रमिला कौशिक
नई दिल्ली
28/3/2023