दिव्यांग
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इतिहास मिटता नहीं
रचा जाता है।
जो लिखा जा चुका
दर्ज हो जाता है।
अजर-अमर होती है आत्मा
क्या मिट सके गाँधी महात्मा ?
पूरी दुनिया है अंश परमात्मा का
कहाँ नहीं है वो सर्वव्यापी ?
संपूर्ण संसार का इतिहास
व्याप्त है ऐसे ही पूरे संसार में।
किसमें है ताकत मिटा दे उसे
नक्शे दुनिया से हटा दे उसे।
किताबों के पन्नों में जो ज़िंदा है
काट कर उसे दिव्यांग
बना दोगे क्या ?
वाह! नाम तो अपंगों को
तुमने दिव्यांग दिया।
पर कर क्षत-विक्षत इतिहास को
बना अपंग ही दिया।
नाम बदल देने से अपंग को
अंग मिल तो नहीं गया।
ऐसे ही काट-छाँट करने से
इतिहास मर तो नहीं गया।
फाड़ भी दोगे अगर पन्ने
दूसरी किताब से वे झाँकेंगे।
तुम्हारी करनी का हिसाब
कल को तुमसे वे माँगेंगे।
अनश्वर हैं वो तो
नश्वरता उनकी कैसे आँकोगे ?
यहाँ-वहाँ न जाने कहाँ-कहाँ
अंकित है जो ज़र्रे-ज़र्रे में
कब तक और कैसे उसे मारोगे ?
लिखी जा रही है भूमिका
तुम्हारे भी इतिहास की।
याद रखेगा ज़माना कहानी
तुम्हारे सब प्रयास की।
कल आज और कल
समय का पहिया
चलता ही रहेगा।
कल वो, आज तुम,
कल कोई और
आना-जाना अनवरत
चलता ही रहेगा।
कर्मों के आधार पर
दर्जा तुम्हारा भी
तय हो ही जाएगा।
इतिहास के पन्नों में
नाम तुम्हारा भी
दर्ज हो ही जाएगा।
आने वाली पीढ़ी द्वारा
इतिहास तुम्हारा भी
कल पढ़ा ही जाएगा।।
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रचनाकार - प्रमिला कौशिक
नई दिल्ली
5/4/2023