(रचनाकार - प्रमिला कौशिक)
हमसफ़र
मेरा जो हमसफ़र है
मुझे जान से भी प्यारा है।
है उसे भी लगाव मुझसे
जहान में सबसे न्यारा है।
कहीं भी जाए वह
अपने साथ मुझे ले जाता है।
देता है भरपेट भोजन
पीने को भी कुछ दे जाता है।
पूरी-सब्जी, कभी आलू-पराँठे
चिप्स-बिस्कुट मिलते हैं खाने को।
पानी, फ्रूटी, कोकाकोला
तो कभी जूस भी मिलते पीने को।
वस्त्र, मंजन, साबुन, इत्र और
मेरे जूतों का भी वह ध्यान रखे।
कंघा, क्रीम, दवा यहाँ तक
लैपटॉप मोबाइल का भी मान रखे।
बाहर जाने पर वो मेरे
दरवाजे-खिड़की बंद कर देता।
धूल न जाए श्वास तंत्र में
मेरे हित सारे उपाय कर लेता।
लेकिन घर आने पर मेरे
द्वार-झरोखे खोल सब देता।
बिस्तर पर फिर लेट आराम से
साँस मैं भी खुलकर तब लेता।
पैरों में मेरे स्केट्स लगाकर
मुझे सड़क पर नहीं चलाता है।
मेरा सिर अपने कंधे पर रख
कभी हाथ पकड़ ले जाता है।
समझ गए होगे अब तक तो
हमसफ़र का कौन हूँ मैं ?
दिल के करीब कंधे पे लटका
प्रियतम का प्रिय बैग हूँ मैं।।
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