रेलगाड़ी... भावों की
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रेलगाड़ी
भावों की
चलने लगी
अनेक दृश्य
अच्छे - बुरे
कई स्टेशन
गाँव - शहर
छोटे - बड़े
रुकती है
चलती है
इंजन भी
बदलती है।
भावों की
रेलगाड़ी
तेज़ है
रफ़्तार।
छुक छुक
छुक छुक
चलती ही
जाती है।
कविता में
बदलती है।
दुःख है
सुख भी है
करुणा है
स्नेह है
शांत भी है
क्रोध भी है
बच्चों सा
वात्सल्य भी
ईर्ष्या भी है
द्वेष भी है
घृणा का
है भाव भी
बातें घर की
परिवार की
समाज की
देश की भी
देश की
राजनीति भी।
समेटे ख़ुद में
सारे राहगीर
चलती ही
जाती है।
भावों की
रेलगाड़ी
चली तो
चलती ही
जाती है।
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अभिव्यक्ति - प्रमिला कौशिक