बंद आंखों से सपने देखो तो पूरे नहीं होते,
ऐसा कुछ सुना है!
खुली आंखों से सपने देखो तो सोने नहीं देते सुकून से,
ये तो आजमाया है!
अजीब दास्तां है ना इन आंखों और सपनों का,
साथ रहकर भी साथ नहीं रह सकते ,
और दूर भी नहीं जा सकते!
साथ चलके मगर इनके मंजिल तो
पाई जा सकती है,
बंद आंखों से तो ना सही मगर,
खुली आंखों से मुकाम तो पाई जा सकती है!
ऐसे ही सोच के मैंने अपने ख्वाबों की तरफ,
अपना कदम बढ़ाया है!
अपने कदमों को अपने ख्वाबों की तरफ बढ़ा कर,
कुछ ख्वाबों से रूबरू हो गई हूं मैं!
मगर जो ख्वाब अधूरे से हैं,
उन्हें हकीकत करना चाहती हूं!
जानती हूं मंजिल अभी करीब तो नहीं है,
मगर मंजिल के राहों से बेखबर भी नहीं हूं मैं!
____SHIKHA
-Shikha