#kavyotsav -2
ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में
पल में टूटते-बनते कितने सपने यहाँ
कितने होते है आहत पल में यहाँ
प्रतिक्षण चलता है दौर वाद-संवाद का
कोई मूल्यों इसके पहचानता नही
ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में
यहाँ सुख ,दुख ,हँसी और रुदन है यहाँ
होती भावनाओं की कितनी बौछार है
बनती नही कभी सुर्खियां ये अख़बार के
तू तो कवि है इस पर कविता ही कर
ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में
मानता हूँ इसका कोई अस्तित्व नही
इनके मूल्यों पर ही केवल चर्चा तू कर
एक तुझसे ही है आशा मेरा
यूँ ना मुझको तू उदास कर
ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में
लिखते सब दृश्य जगत के भाव को
अदृश्य जगत के भाव कोई लिखता नही
अरे झेल जाते सभी दृश्य भाव को
अदृश्य भाव सभी झेल पातें नही
ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में
खोखला कर देता यह अंदर से
बाहर से स्वस्थ नजर आते सभी
उठा कलम लिख इन छुपे भाव पर
करा दे अवगत दुनिया से सभी
ऐ!कवि आ कभी मेरे मन के गावँ में