#काव्योत्सव २
#भावनाप्रधान
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माँ
चढ़ती धूप में छाँव सी हो ,
अँधेरे में उजाले के भाव सी हो,
आँचल तले हमको सांवरा है,
हमारा हर दुःख तुम्हे ना गवारा है,
कभी छाँव तो कभी धूप सी हो,
कभी पहार तो कभी सूप सी हो,
अपने बलिदान से हमको तराशा है,
हमारी खुशी का एक तू ही आसरा है,
तू ही हमारी पहली गुरु है,
हमारी जिंदगी तुमसे ही शुरू है,
काटों भरे जीवन में तू फूल सी है,
हर मुसीबत के लिए तू शूल सी है,
बच्चो के लिए माँ एक उपहार है,
तेरी खुशी ही हमारे लिए त्यौहार है,
तुम्हारी हर इच्छा का मान हमारा कर्त्तव्य है,
माँ , तू ही हमारे लिए सर्वस्व है,
तुम हमारे लिए भगवान हो ,
हम तुम्हारी और तुम हमारी जान हो ,
तेरे उपकारों का बदला हम कभी चुका ना पाएंगे,
बस तेरे सामने अपने हाथ जोड़कर झुक जायेगे |
-पूर्णिमा 'राज'