अस्त होते जीवन सूर्य की वेदना !
अजन्मा गर्भस्थ शिशु था , किलकारियां मारते आया | बचपन खेलते - कूदते बीता और जवानी मस्ती में | जवानी जिम्मेदारियां भी लेकर आईं और जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी | ........ लेकिन इन्हीं जवानी की मस्ती और वैवाहिक जीवन की अनिवार्यता के बीच जाने कब संतानें भी घर में आ
गईं |
..लो, अब तो उसका भरा पूरा परिवार कहलाने लगा | लेकिन उन दोनों के दायित्व बढ़ते चले गए ...पहले बच्चों का पालन पोषण और फिर उनकी पढ़ाई और नौकरी |
अरे ? देखते देखते घर में ऊधम मचाते रहने वाला मेरा अंश तो बड़ा हो गया ..और , और उसका तो सेलेक्शन भी हो गया एक अच्छी सेवा के लिए ! शादी की तलाश हुई और बहुत छोटे शहर से जिसमें सांस्कृतिक प्रदूषण की सम्भावना कम हो, संस्कारी हो, शील मर्यादा जानती हो ऎसी बहू घर ले आया ।
लेकिन यह क्या ? उसने उस खुशहाल परिवार में एक एक करके शील ,मर्यादा, मान सम्मान की मर्यादा रेखाओं को तोड़ा ही नहीँ मसला डाला है | एक बेटा उसके घर में कदम रखते ही भगवान को प्यारा हो गया। अनहोनी! अब दूसरा बेटा.. उस बेटे पर तो कुण्डली मारकर ऐसा बैठ गई कि उसने अपना प्रमोशन, अपना विवेक, अपनी निर्णय लेने की क्षमता को भी "गुड बाय" कर दिया है |
इतने तक भी बात होती तो चलो अच्छा है. .अब तो अपनी संतानों को भी गालियाँ, अशिष्टता ,उद्दंडता का हार पहना दिया है |
हे प्रभु ! हे जीवन नैय्या के खेवन हार, कहां जाएगा मेरा असमय अस्त होता जीवन सूर्य ? 😘