यमराज की कांवड़ यात्रा
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कांवड़ियों की भीड़ देखकर यमराज अकुलाया
उसके भी मन में कांवड़ यात्रा का विचार आया।
मुझे फोन मिलाया और फ़रमाया
प्रभु! मैं भी कांवड़ उठाऊँ? भोले को जल चढ़ा आऊँ?
मैंने समझाया - पहले सोच-विचार कर ले
अपने स्थानापन्न का भी इंतजाम कर लें
ऐसा न हो कि सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाये,
तू भोले को जल चढ़ाने जाये
और वहाँ तुझे देखकर भोलेनाथ को गुस्सा आ जाये।
यमराज मायूस होकर कहने लगा
प्रभु!अब आप ही कुछ जुगाड़ लगाइए
मेरे अरमानों को परवान चढ़वाइए,
कैसे भी मुझे कांवड़ यात्रा का सरल उपाय बताइए।
अब तू इतना जिद कर रहा है, तो आ जा
चुपचाप मेरे कंधे पर सवार हो जा,
मार्ग में ज्यादा उछल-कूद मत करना
मुझे छोड़ कर इधर उधर मत फुदकना।
जब मैं भोलेनाथ को जल चढ़ाऊँ
तो तू भी मेरे लोटे को पकड़े रहना।
हम दोनों का ही कल्याण हो जायेगा
कांवड़ यात्रा का आनंद ही नहीं
भोलेनाथ का आशीर्वाद भी मिल जायेगा,
हम दोनों को एक साथ
कांवड़ यात्रा का सुख मिल जायेगा
और आमजन जान भी नहीं पायेगा
भगवान भोलेनाथ को गुस्सा भी नहीं आयेगा,
मेरे साथ तेरा भी नाम सुर्खियों में आ जायेगा।
सुधीर श्रीवास्तव