कैसे तुम्हे मनाऊं मैं ?
किन फूलों को हार बनाऊं
किनको तुम्हें चढ़ाऊं मैं।
लाल गुलाबी नीले पीले।
क्या क्या चुन के लाऊं मैं ?
इन फूलों की क्या ही बिसात ?
तेरे नयन, कपोल, नक्ष के
आगे फीका है पारिजात।
तुम स्वयं कुमुदिनी ,चंपा हो।
ये पुष्प तेरे श्रृंगार प्रिए।
कैसा गुलाब, कैसी जूही।
तुम हो बसंत की भाल प्रिए।
ये रोज़ पोज परपोज दिवस।
ये एक दिन का है खेल महज़।
एक टेडी एक गुलाब देकर।
सातों जन्मों का ख्वाब देकर।
ये पा लेंगे क्या प्रेम सहज ?
प्रेम सरल है सहज नहीं।
प्रेम मृदुल है गरल नहीं।
प्रेम सुधा है समर नहीं।
आनंद त्रिपाठी