मैं मना लूंगा तुम्हे।
अरे मैं जानता हूं रंग तेरा ढंग तेरा।
तुम नहीं हो क्रोध करते , आहे भरते।
ये तो बस एक वक्त है, हालात है।
तुम जो डुबोग कभी
तो झट उठा लूंगा तुम्हे।
मैं मना लूंगा .......
कुछ भी हो जाए न सहना।
चुप न रहना, बात करना
मुझसे कहना , जो भी कहना।
यूं घुटन में मत न रहना।
जो भी होगी बात
उस बात से
मैं निकालूंगा तुम्हे।
मैं मना लूंगा..........
मुझको पंचिंग बैग समझो।
और मारो खूब धो दो।
सारा का सारा निचोड़ो।
अपने मन की ताखों से
मुझ पे फेंको कील कांटे।
उफ्फ न निकलेगी कभी
आवाज़ आयेगी नहीं।
स्वागत सा समझूंगा उसे
फिर भी मना लूंगा तुम्हे।
आनंद त्रिपाठी